आपकी नज़रों तक हम पहँचे कुछ मख़सूस ख़यालों से
Aapki nazro tak hum pahuche kuch makhsus khyalo se
आपकी नज़रों तक हम पहँचे कुछ मख़सूस ख़यालों से
लोग तो दिल तक आ जाते है चलकर चंद सवालों से
ख़ैर हो उनकी जिनके लब तक उन हाथों से जाम गए
जिन हाथों ने फूल चुने हैं पेड़ से बिछड़ी डालों से
आँखों में पानी, मन में बादल, होंट पे चुप्पी बैठी कोई
दिल से दिल की बात हुई है दो हिलते रूमालों से
जिनके घर की छत से होकर सूरज रोज़ गुजरता है
उन तक कोई किरन न पहुँची पिछले अनगित सालों से
बे दस्तक-बेजान घरों के दरवाज़े मुँह खोल न दें
आज तो कमरों की तस्वीरें उलझी हैं दीवालों से
साबित चेहरा लेकर कैसे आज ‘शलभ’ तुम घूम रहे
झाँक रहे हैं टूटे-टूटे दरपन घर के आलों से
चाँद पहाड़ी के पिछवाड़े मुँह लटका कर बैठ गया
रूठ गया हो जैसे कोई अपने ही घर वालों से