Hindi Poem of Shlabh Shri Ram Singh “  Dhare hatheli gaal par“ , “धरे हथेली गाल पर” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

धरे हथेली गाल पर

 Dhare hatheli gaal par

धरे हथेली गाल पर

सोच रहा हूँ कल की बातें- गए वर्ष की कुछ तस्वीरें

झूल रहीं दीवाल पर!

धरे हथेली गाल पर…!

हवा खिड़कियों के परदों पर छिटके गंध बबूल की ।

रोशनदान घुट रहे सारे- कई दिनों से गुलदस्तों पर-

पर्त जमी है धूल की।

बिस्तर पर सिलवटें, सिलवटों पर सिगरेट की छाई

हाथ उठाऊँ, इसके पहले ठमक गई है- दीठ किसी के-

नाम कढ़े रुमाल पर।

धरे हथेली गाल पर…।

गए क्षणों की पगध्वनियों को झेल रहा है कुहरा

मैं आवाज़ लगाने को हूँ- दिया सांझ का मना कर रहा-

कहता ठहर, न गुहरा!

देख कि कल तक घुटनों के बल चलने वाला चाँद

आज बाँटने स्वप्न रुपहले-क्षितिजों के झुरमुट से उभरा

ठण्डी हँसी उछालकर।

धरे हथेली गाल पर…।

थम-सा गया आज कल मन का दूर-दूर तक जाना।

बहुत भला लगता है अब तो- उकड़ूँ बैठे हरी घास पर-

अपने को दुहराना ।

काश कि कोई आकर मुझसे फिर न कभी कुछ कहता

नन्हा तिनका लिए हाथ में- यों ही जीने की तबियत करती है

पूरे साल भर।

धरे हथेली गाल पर…।

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