एक और नया गीत
Ek aur naya geet
चम्पा ने
जब पलाश को देखा
थोड़ी-सी और खिल गई!
एक की हथेली ने पोंछ लिया
दूजे के माथ का पसीना।
सहसा आसान हो गया जीना
बिन खोजे राह मिल गई!
चम्पा ने…!
ईहा की बंधी हुई मुट्ठियाँ
जीवन के उठे हुए पाँव
देख–फ़र्क़ अपना खो बैठे हैं
जाड़ा-बरसात– धूप-छाँव!
कुण्ठा की नींव हिल गई!
चम्पा ने…।