हस्ती को हसरत की नई रह गुज़र करो
Hasti ko hasrat ki nai rah guzar karo
हस्ती को हसरत की नई रह गुज़र करो
सूरज ढलान पर है शमआ को खबर करो
यह सच है अन्धेरे का समंदर है सामने
रोशन दिमाग लोगो! बढ़ो, बढ़के सर करो
तारीकियों को शोर पिलाती है यह हवा
मश अल बदस्त-बाजे जिरस तेज़तर करो [1]
गो भीड़ बेशुमार है पर रास्ता तो है
थोड़ा-सा सब्र रख के इसी पर सफ़र करो
तुम तो नतीजतन ग़मे दुनिया की नज़्र हो
अश्कों को अब न शामिले-ख़ूने जिगर करो
यह हल्क-ए निज़ात है क्या सोच रहे हो
करना तुम्हे है जो भी शलभ सर-ब-सर करो