Hindi Poem of Shlabh Shri Ram Singh “Saza“ , “सज़ा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

सज़ा

 Saza

तमाशा बनने की तैयारी ख़त्म हुई

तमाशा बन गया है अब एक पूरा का पूरा आदमी |

नाराज़ लोग ख़ुश हुए सारे के सारे

दीदा-फाड़ अंदाज़ में देखते हुए उसकी ओर

लगाते हुए कहकहा

पीटते हुए ताली

अपनी-अपनी थाली बजाने लगे है अब |

तमाशा बना आदमी

बदलता है तमाशबीनों को तमाशे में

इसी तरह

बना कर दीदा-फाड़

लगवा कर कहकहा

पिटवा कर ताली

बजवा कर सबसे अपनी-अपनी थाली |

आदमी को तमाशे की शक्ल में देखने की

एक जायज और बेहतर सज़ा है यह |

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