स्वातंत्र्योत्तर भारत
Swantrottar Bharat
बादल तो आ गए
पानी बरसा गए
लेकिन यह क्या हुआ? धानों के–
खिले हुए मुखड़े मुरझा गए!
हवा चली–शाखों से अनगिन पत्ते बिछुड़े!
बैठे बगुले उड़े।
लेकिन यह क्या हुआ? पोखर तीरे आकर–
डैने छितरा गए!
बादल तो आ गए…!
दूब हुलस कर विहँसी–जलने के दिन गए!
सूरज की आँख बचा–ईंट की ओट में
निकलने के दिन गए!
लेकिन यह क्या हुआ? पानी को छूते ही
अँखुए पियरा गए…!
निरवहिनों ने समझा–गीतों के दिन हुए!
पेंगों के पल हुए–कजरी के छिन हुए!
लेकिन यह क्या हुआ? आपस में
सब के सब झूले टकरा गए!
बादल तो आ गए…।