Hindi Poem of Shri Krishan Tiwari “  Navgeet 5”,”नवगीत – 5” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

नवगीत – 5

 Navgeet 5

 

वक्त की आवाज़ पर

फिर फेंकने दो एक पत्थर और

शायद

बन्द शीशे के घरों में लोग

बाहर निकल आएं|

देखता हूँ —

रोपकर पीछे अँधेरा,

बहुत आगे बढ़ गया है सूर्य का रथ

उसे मुड़ना चाहिए अब|

छोड़कर आकाश

टूटे गुम्बदों में रह रहे हैं जो कबूतर

उन्हें उड़ना चाहिए अब|

सनसनाती हवा की ऊँगली पकड़कर

घूमने दो आईने को फिर शहर में

कौन जाने आज के ये सभी चेहरे

कल सुबह तक बदल जाएँ|

जानता हूँ –

आंधियां जिस राह से होकर गयी हैं,

उस तरफ़ साबूत कोई मील का

पत्थर नहीं है|

और यह भी जानता हूँ —

हाथ फिर से जो हवा में तन रहे हैं|

उन्हें कन्धों से अलग करना

किसी  भी प्रश्न का उत्तर नहीं है|

इसलिए अब

धुंआ बनकर छा रही खामोशियों से

फूटने दो आग के स्वर

बहुत मुमकिन है

धमनियों में जमे कतरे खून के

फिर पिघल जाएँ|

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.