Hindi Poem of Shriprakash Shukal “  Adhrya”,”अर्ध्य” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अर्ध्य

 Adhrya

 

चांद निकल आया

यही तो कहा था

उस रात

जब माध की चौथ को तुम अर्ध्य दे रही थी

तुम्हारे लिये चांद का यह निकलना

पुतलियों में फँसी हवा का निकलना था

जहाँ रोशनी थी

हरियाली थी

और एक ऐसी आर्द्रता थी

जो तुम्हारे प्रेम से भारी थी

और भरी हुई

निकला हुआ चांद

गाजीपुर की चांदनी से

मुझे बेपर्दा कर रहा था

और मै बनारस की बरसात में भींग रहा था

चांद आज हमारे लिये

उस चकवा की तरह है

जहाँ सिर्फ़ रात है

मुझे इस चंद्रमा के गुज़र जाने का इंतज़ार होगा

तुमसे व सिर्फ़ तुमसे

मिलने के लिये ।

 

 

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