Hindi Poem of Shriprakash Shukal “ Andhere me kasha ”,”अंधेरे में काशी” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अंधेरे में काशी

Andhere me kasha 

 

शाम के वक़्त लोग जब

अपने अपने अड्डों केा जाते हैं

काशी अपने अंधेरे में चली जाती है

काशी का अपने अंधेरे में जाना

अंधेरे में काशी का होना है

जहां जीवन की आहट मिलती है

और ज्ञानी अपना ज्ञान बघारता है

अंधेरे में काशी

उजाले के काशी से ज़्यादा खूबसूरत है

और मादक भी

यह अंधेरे में मचलती है

और मिचलती भी

जहाँ दर्द है और प्रसव भी

अंधेरे में काशी

अपलक निहारती रहती है ग्राहक

टिकठी की तरह तनी हुई

कभी यह अलसाई हुई खूबसूरत नायिका है

तो कभी हंकारती हुयी नागिन

और इन दोनों के बीच

उसका विस्तार वही महाशमशान होता है

जिसकी ज्योति कभी बुझने नही पाती

इसकी हर घाटों में थिरकन है

और थकान भी

करीब-करीब उस बूढे़ की तरह

जो हर शाम घर से नाराज़ होकर निकल जाता है

अपनी जवानी की खोज में

अंधेरे में यह शव है

उजाले में पाखंड

अंधेरे में काशी को समझना हो तो

गंगा के ठीक बीचो-बीच चले जाइये

काशी लगातार उभर रही होती है

सूरज लगातार डूब रहा होता है

काशी में चीज़ें अंधेरे में आती हैं

जैसे अंधेरे में आते हैं विचार

अंधेरे में आता है दूध

अंधेरे में आता है प्रेम

अंधेरे में काशी

एक तरफ से उठती है

तो दूसरी तरफ से सिकुड़ रही होती है

काशी का यह उठना और सिकुड़ना

काशी का अंधेरे में चलना है

एक ऐसे उजाले की तलाश में

जहाँ गैर अज़ निगाह कोई हाईल नही रहता ।

 

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