पाथेय
Pathey
आओ
बैठो
साथ पिया
बालू के कण हैं अपने ही ।
नहीं यहाँ दुनिया का चक्कर
पलकों में पग धर आओ री
यह है रेत नदी बन भीतर
शीतलता सी उतरो री!
तट है सूना-सूना-सा
लहरों में अब उतराओ भी
जिन हलचल को अब तक बांधे
खोल उन्हें, इतराओ भी!
इतना उमड़ो इतना घुमड़ो
यह तट उभरे बन साक्षी ,जी
विरह का मारा जब भी गुज़रे
पाये पाथेय, संभाले जी!