रेत में शाम
Ret me sham
चल पड़ी नाव
धीरे-धीरे फिर संध्या आई
नदी नाव संयोग हुआ अब
मन में बालू की आकृतियाँ छाई
टूटा तारा
टूटी लहरें
टूटा बाट बटोही
टूट-टूट कर आगे बढ़ता
पीछे छूटा गति का टोही
चांद निराला
मुँह चमकाता
चमका-चमका कर मुँह बिचकाता
बचा हुआ जो कुछ कण था
आगे पीछे बहुत छकाता
आया तट
अब लगी नाव
लहरें हो गयी थेाड़ी शीतल
मन का मानिक एक हिराना
लहरों पर होती पल
हलचल!