आराधना -सुभद्रा कुमारी चौहान
Aradhna – Subhadra Kumari Chauhan
जब मैं आँगन में पहुँची,
पूजा का थाल सजाए।
शिव जी की तरह दिखे वे,
बैठे थे ध्यान लगाए॥
जिन चरणों के पूजन को,
यह हृदय विकल हो जाता।
मैं समझ न पाई, वह भी,
है किसका ध्यान लगाता?
मैं सन्मुख ही जा बैठी,
कुछ चिंतित सी घबराई।
यह किसके आराधक हैं,
मन में व्याकुलता छाई॥
मैं इन्हें पूजती निशि-दिन,
ये किसका ध्यान लगाते?
हे विधि! कैसी छलना है,
हैं कैसे दृश्य दिखाते??
टूटी समाधि इतने ही में,
नेत्र उन्होंने खोले।
लख मुझे सामने हँस कर
मीठे स्वर में वे बोले॥
फल गई साधना मेरी,
तुम आईं आज यहाँ पर।
उनकी मंजुल-छाया में
भ्रम रहता भला कहाँ पर॥
अपनी भूलों पर मन यह
जाने कितना पछताया।
संकोच सहित चरणों पर,
जो कुछ था वही चढ़ाया॥