उपेक्षा -सुभद्रा कुमारी चौहान
Upeksha – Subhadra Kumari Chauhan
इस तरह उपेक्षा मेरी,
क्यों करते हो मतवाले!
आशा के कितने अंकुर,
मैंने हैं उर में पाले॥
विश्वास-वारि से उनको,
मैंने है सींच बढ़ाए।
निर्मल निकुंज में मन के,
रहती हूँ सदा छिपाए॥
मेरी साँसों की लू से,
कुछ आँच न उनमें आए।
मेरे अंतर की ज्वाला,
उनको न कभी झुलसाए॥
कितने प्रयत्न से उनको,
मैं हृदय-नीड़ में अपने,
बढ़ते लख खुश होती थी,
देखा करती थी सपने॥
इस भांति उपेक्षा मेरी,
करके मेरी अवहेला,
तुमने आशा की कलियाँ
मसलीं खिलने की बेला॥