Hindi Poem of Subhadra Kumari Chauhan “Yah Kadamb ka pedh”, “यह कदम्ब का पेड़” Complete Poem for Class 10 and Class 12

यह कदम्ब का पेड़ -सुभद्रा कुमारी चौहान

Yah Kadamb ka pedh – Subhadra Kumari Chauhan

 

यह कदंब का पेड़ अगर मां होता जमना तीरे
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे
ले देती यदि मुझे तुम बांसुरी दो पैसे वाली
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली
तुम्हें नहीं कुछ कहता, पर मैं चुपके चुपके आता
उस नीची डाली से अम्मां ऊंचे पर चढ़ जाता
वहीं बैठ फिर बड़े मज़े से मैं बांसुरी बजाता
अम्मां-अम्मां कह बंसी के स्वरों में तुम्हें बुलाता

सुन मेरी बंसी मां, तुम कितना खुश हो जातीं
मुझे देखने काम छोड़कर, तुम बाहर तक आतीं
तुमको आती देख, बांसुरी रख मैं चुप हो जाता
एक बार मां कह, पत्तों में धीरे से छिप जाता
तुम हो चकित देखती, चारों ओर ना मुझको पातीं
व्याकुल सी हो तब, कदंब के नीचे तक आ जातीं
पत्तों का मरमर स्वर सुनकर,जब ऊपर आंख उठातीं
मुझे देख ऊपर डाली पर, कितनी घबरा जातीं

ग़ुस्सा होकर मुझे डांटतीं, कहतीं नीचे आ जा
पर जब मैं ना उतरता, हंसकर कहतीं मुन्ना राजा
नीचे उतरो मेरे भैया, तुम्हें मिठाई दूंगी
नये खिलौने-माखन-मिश्री-दूध-मलाई दूंगी
मैं हंसकर सबसे ऊपर की डाली पर चढ़ जाता
वहीं कहीं पत्तों में छिपकर, फिर बांसुरी बजाता
बुलाने पर भी जब मैं ना उतरकर आता
मां, तब मां का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता

तुम आंचल फैलाकर अम्मां, वहीं पेड़ के नीचे
ईश्वर से विनती करतीं, बैठी आंखें मीचे
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं, धीरे धीरे आता
और तुम्हारे आंचल के नीचे छिप जाता
तुम घबराकर आंख खोलतीं, और मां खुश हो जातीं
इसी तरह खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
यह कदंब का पेड़ अगर मां होता जमना तीरे ।।

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