Hindi Poem of Sumitranand Pant “Anubhuti ”, “अनुभूति ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

अनुभूति -सुमित्रानंदन पंत

Anubhuti – Sumitranand Pant

तुम आती हो,
नव अंगों का
शाश्वत मधु-विभव लुटाती हो।

बजते नि:स्वर नूपुर छम-छम,
सांसों में थमता स्पंदन-क्रम,
तुम आती हो,
अंत:स्थल में
शोभा ज्वाला लिपटाती हो।

अपलक रह जाते मनोनयन
कह पाते मर्म-कथा न वचन,
तुम आती हो,
तंद्रिल मन में,
स्वप्नों के मुकुल खिलाती हो।

अभिमान अश्रु बनता झर-झर,
अवसाद मुखर रस का निर्झर,
तुम आती हो,
आनंद-शिखर,
प्राणों में ज्वार उठाती हो।

स्वर्णिम प्रकाश में गलता तम,
स्वर्गिक प्रतीति में ढलता श्रम
तुम आती हो,
जीवन-पथ पर,
सौंदर्य-रस बरसाती हो।

जगता छाया-वन में मर्मर,
कंप उठती रुद्ध स्पृहा थर-थर,
तुम आती हो,
उर तंत्री में,
स्वर मधुर व्यथा भर जाती हो।

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