Hindi Poem of Sumitranand Pant “Dhenuyen ”, “धेनुएँ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

धेनुएँ -सुमित्रानंदन पंत

Dhenuyen – Sumitranand Pant

ओ रंभाती नदियों,
बेसुध
कहाँ भागी जाती हो?
वंशी-रव
तुम्हारे ही भीतर है!

ओ, फेन-गुच्छ
लहरों की पूँछ उठाए
दौड़ती नदियों,

इस पार उस पार भी देखो,
जहाँ फूलों के कूल
सुनहरे धान से खेत हैं।

कल-कल छल-छल
अपनी ही विरह व्यथा
प्रीति कथा कहती
मत चली जाओ!

सागर ही तुम्हारा सत्य नहीं
वह तो गतिमय स्त्रोत की तरह

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