Hindi Poem of Sumitranand Pant “Jag ke urvark aangan mein ”, “जग के उर्वर आँगन में” Complete Poem for Class 10 and Class 12

जग के उर्वर आँगन में -सुमित्रानंदन पंत

Jag ke urvark aangan mein – Sumitranand Pant

जग के उर्वर – आँगन में
बरसो ज्योतिर्मय जीवन!
बरसो लघु – लघु तृण, तरु पर
हे चिर – अव्यय, चिर – नूतन!

बरसो कुसुमों में मधु बन,
प्राणों में अमर प्रणय – धन;
स्मिति – स्वप्न अधर – पलकों में,
उर-अंगों में सुख-यौवन!

छू-छू जग के मृत रज – कण
कर दो तृण – तरु में चेतन,
मृन्मरण बाँध दो जग का,
दे प्राणों का आलिंगन!

बरसो सुख बन, सुखमा बन,
बरसो जग – जीवन के घन!
दिशि – दिशि में औ’ पल – पल में
बरसो संसृति के सावन!

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