जीना अपने ही में -सुमित्रानंदन पंत
Jeena apne hi mein – Sumitranand Pant
जीना अपने ही में
एक महान कर्म है,
जीने का हो सदुपयोग
यह मनुज धर्म है।
अपने ही में रहना
एक प्रबुद्ध कला है,
जग के हित रहने में
सबका सहज भला है।
जग का प्यार मिले
जन्मों के पुण्य चाहिए,
जग जीवन को
प्रेम सिन्धु में डूब थाहिए।
ज्ञानी बनकर
मत नीरस उपदेश दीजिए,
लोक कर्म भव सत्य
प्रथम सत्कर्म कीजिए।