Hindi Poem of Sumitranand Pant “Lahron ka Geet ”, “लहरों का गीत ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

लहरों का गीत -सुमित्रानंदन पंत

Lahron ka Geet – Sumitranand Pant

अपने ही सुख से चिर चंचल
हम खिल खिल पडती हैं प्रतिपल,
जीवन के फेनिल मोती को
ले ले चल करतल में टलमल!

छू छू मृदु मलयानिल रह रह
करता प्राणों को पुलकाकुल;
जीवन की लतिका में लहलह
विकसा इच्छा के नव नव दल!

सुन मधुर मरुत मुरली की ध्वनि
गृह-पुलिन नांध, सुख से विह्वल,
हम हुलस नृत्य करतीं हिल हिल
खस खस पडता उर से अंचल!

चिर जन्म-मरण को हँस हँस कर
हम आलिंगन करती पल पल,
फिर फिर असीम से उठ उठ कर
फिर फिर उसमें हो हो ओझल!

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