Hindi Poem of Sumitranand Pant “Moh ”, “मोह” Complete Poem for Class 10 and Class 12

मोह -सुमित्रानंदन पंत

Moh – Sumitranand Pant

 

छोड़ द्रुमों की मृदु-छाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया,

बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?
भूल अभी से इस जग को!

तज कर तरल-तरंगों को,
इन्द्र-धनुष के रंगों को,

तेरे भ्रू-भंगों से कैसे बिंधवा दूँ निज मृग-सा मन?
भूल अभी से इस जग को!

कोयल का वह कोमल-बोल,
मधुकर की वीणा अनमोल,

कह, तब तेरे ही प्रिय-स्वर से कैसे भर लूँ सजनि! श्रवन?
भूल अभी से इस जग को!

ऊषा-सस्मित किसलय-दल,
सुधा रश्मि से उतरा जल,

ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहला दूँ जीवन?
भूल अभी से इस जग को!

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.