Hindi Poem of Sumitranand Pant “Pashan Khand ”, “पाषाण खंड” Complete Poem for Class 10 and Class 12

पाषाण खंड -सुमित्रानंदन पंत

Pashan Khand – Sumitranand Pant

 

वह अनगढ़ पाषाण खंड था-
मैंने तपकर, खंटकर,
भीतर कहीं सिमटकर
उसका रूप निखारा
तदवत भाव उतारा

श्री मुख का
सौंदर्य सँवारा!

लोग उसे
निज मुख बतलाते
देख-देख कर नहीं अघाते
वह तो प्रेम
तुम्हारा प्रिय मुख
तन्मय अंतर को
देता सुख।

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