Hindi Poem of Sumitranand Pant “Shri Surya Kant Kripathi ke Prati ”, “श्री सूर्यकांत त्रिपाठी के प्रति” Complete Poem for Class 10 and Class 12

श्री सूर्यकांत त्रिपाठी के प्रति -सुमित्रानंदन पंत

Shri Surya Kant Kripathi ke Prati – Sumitranand Pant

छंद बंध ध्रुव तोड़, फोड़ कर पर्वत कारा
अचल रूढ़ियों की, कवि! तेरी कविता धारा
मुक्त अबाध अमंद रजत निर्झर-सी नि:सृत–
गलित ललित आलोक राशि, चिर अकलुष अविजित!
स्फटिक शिलाओं से तूने वाणी का मंदिर
शिल्पि, बनाया — ज्योति कलश निज यश का घर चित्त।
शिलीभूत सौन्दर्य ज्ञान आनंद अनश्वर
शब्द-शब्द में तेरे उज्ज्वल जड़ित हिम शिखर।
शुभ्र कल्पना की उड़ान, भव भास्वर कलरव,
हंस, अंश वाणी के, तेरी प्रतिभा नित नव;
जीवन के कर्दम से अमलिन मानस सरसिज
शोभित तेरा, वरद शारदा का आसन निज।
अमृत पुत्र कवि, यशकाय तव जरा-मरणजित,
स्वयं भारती से तेरी हृतंत्री झंकृत।

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