Hindi Poem of Suryakant Tripathi “Nirala” “Khelungi kabhi na holi ”, “खेलूँगी कभी न होली” Complete Poem for Class 10 and Class 12

खेलूँगी कभी न होली -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

Khelungi kabhi na holi – Suryakant Tripathi “Nirala”

 

खेलूँगी कभी न होली
उससे जो नहीं हमजोली।

यह आँख नहीं कुछ बोली,
यह हुई श्याम की तोली,
ऐसी भी रही ठठोली,
गाढ़े रेशम की चोली-

अपने से अपनी धो लो,
अपना घूँघट तुम खोलो,
अपनी ही बातें बोलो,
मैं बसी पराई टोली।

जिनसे होगा कुछ नाता,
उनसे रह लेगा माथा,
उनसे हैं जोडूँ – जाता,
मैं मोल दूसरे मोली।

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