मरा हूँ हज़ार मरण -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
Mara Hu Hajar Maran – Suryakant Tripathi “Nirala”
मरा हूँ हज़ार मरण
पाई तब चरण-शरण ।
फैला जो तिमिर जाल
कट-कटकर रहा काल,
आँसुओं के अंशुमाल,
पड़े अमित सिताभरण ।
जल-कलकल-नाद बढ़ा
अन्तर्हित हर्ष कढ़ा,
विश्व उसी को उमड़ा,
हुए चारु-करण सरण ।