मौन -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
Mon – Suryakant Tripathi “Nirala”
बैठ लें कुछ देर,
आओ, एक पथ के पथिक-से
प्रिय, अंत और अनन्त के,
तम-गहन-जीवन घेर।
मौन मधु हो जाए
भाषा मूकता की आड़ में,
मन सरलता की बाढ़ में,
जल-बिन्दु सा बह जाए।
सरल अति स्वच्छ्न्द
जीवन, प्रात: के लघुपात से,
उत्थान-पतनाघात से
रह जाए चुप, निर्द्वन्द ।