Hindi Poem of Suryakant Tripathi “Nirala” “Mukti ”, “मुक्ति” Complete Poem for Class 10 and Class 12

मुक्ति -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

Mukti – Suryakant Tripathi “Nirala”

तोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा
पत्थर, की निकलो फिर,

गंगा-जल-धारा!

गृह-गृह की पार्वती!

पुनः सत्य-सुन्दर-शिव को सँवारती

उर-उर की बनो आरती!–
भ्रान्तों की निश्चल ध्रुवतारा!–
तोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा!

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