कहेन किहेन जेस तुलसी तेस केसे अब होये
Kahen kihen jes tulsi tes kese ap hoye
कविता केतना जने किहेन हैं आगेउ करिहैं;
अपनी अपनी बिधि से ई भवसागर तरिहैं,
हमहूँ तौ अब तक एनहीं ओनहीं कै ढोये;
नाइ सोक सरका तब फरके होइ के रोये।
जे अपनइ बूड़त आ ओसे भला उबरिहैं
कैसे बूड़इवाले सँग–सँग जरिहैं मरिहैं
जे, ओनहीं जौं हाथ लगावइँ तउ सब होये।
तुलसी अपुनाँ उबरेन औ आन कँ उबारेन।
जने–जने कइ नारी अपने हाथेन टोयेन;
सबकइ एक दवाई राम नाम मँ राखेन;
काम क्रोध पन कइ तमाम खटराग नेवारेन;
जवन जहाँ कालिमा रही ओकाँ खुब धोयेन।
कुलि आगे उतिरान जहाँ तेतना ओइ भाखेन।