Hindi Poem of Tulsidas “Labh Kaha manush tanu paye, “लाभ कहा मानुष-तनु पाये ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

लाभ कहा मानुष-तनु पाये -तुलसीदास

Labh Kaha manush tanu paye -Tulsidas

 

लाभ कहा मानुष-तनु पाये।

 काय-बचन-मन सपनेहु कबहुँक घटत न काज पराये॥१॥

 जो सुख सुरपुर नरक गेह बन आवत बिनहि बुलाये।

 तेहि सुख कहँ बहु जतन करत मन समुझत नहिं समुझाये॥२॥

 पर-दारा परद्रोह, मोह-बस किये मूढ़ मन भाये।

 गरभबास दुखरासि जातना तीब्र बिपति बिसराये॥३॥

 भय,निद्रा, मैथुन, अहार सबके समान जग जाये।

 सुर दुरलभ तनु धरि न भजे हरि मद अभिमान गँवाये॥४॥

 गई न निज-पर बुद्धि सुद्ध ह्वै रहे राम-लय लाये।

 तुलसीदास यह अवसर बीते का पुनिके पछिताये॥५॥

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