मन में सपने
Man me sapne
हम कभी चाँद पर नहीं होते
सिर्फ़ जंगल में ढूँढ़ते क्यों हो
भेड़िए अब किधर नहीं होते
कब की दुनिया मसान बन जाती
उसमें शायर अगर नहीं होते
किस तरह वो ख़ुदा को पाएँगे
खुद से जो बेख़बर नहीं होते
पूछते हो पता ठिकाना क्या
हम फकीरों के घर नहीं होते।