दे दे इस साहसी अकेले को
De de is sahsi akele ko
दे दे रे
दे दे इस साहसी अकेले को
एक बूंद।
ओ सन्ध्या
ओ फ़कीर चिड़िया
ओ रुकी हुई हवा
ओ क्रमशः तर होती हुई जाड़े की नर्मी
ओ आस पास झाड़ों झंखाड़ों पर बैठ रही आत्मीयता
कैसे? इस धूसर परिक्षण में पंख खोल
कैसे जिया जाता है?
कैसे सब हार त्याग
बार-बार जीवन से स्वत्व लिया जाता है?
कैसे, किस अमृत से
सूखते कपाटों को चीर चीर
मन को निर्बन्ध किया जाता है?
दे दे इस साहसी अकेले को।