बह नहीं जाना लहर में
Bah nahi jana lahar me
यह मधुर मधुवंत बेला
मन नहीं है अब अकेला
स्वप्न का संगीत कंगन की तरह खनका
सांझ रंगारंग है ये
मुस्कुराता अंग है ये
बिन बुलाए आ गया है मेहमान यौवन का
प्यार कहता है डगर में
बह नहीं जाना लहर में
रूप कहता झूम जा, त्यौहार है तन का
घट छलककर डोलता है
प्यार के पट खोलता है
टूटकर बन जाए निर्भर प्राण पाहन का