Hindi Poem of Virendra Mishra “Bah nahi jana lahar me“ , “बह नहीं जाना लहर में” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

बह नहीं जाना लहर में

Bah nahi jana lahar me

यह मधुर मधुवंत बेला

मन नहीं है अब अकेला

स्वप्न का संगीत कंगन की तरह खनका

सांझ रंगारंग है ये

मुस्कुराता अंग है ये

बिन बुलाए आ गया है मेहमान यौवन का

प्यार कहता है डगर में

बह नहीं जाना लहर में

रूप कहता झूम जा, त्यौहार है तन का

घट छलककर डोलता है

प्यार के पट खोलता है

टूटकर बन जाए निर्भर प्राण पाहन का

 

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