Hindi Poem of Virendra Mishra “Meghyatri“ , “मेघयात्री” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मेघयात्री

Meghyatri

रुखी यात्राओं पर निकल रहे हम स्वयं-

पुरवाई हमें मत ढकेलो,

हम प्यासे बादल हैं, इसी व्योम-मंडप के

दे दो ठंडी झकोर

और दाह ले लो।

क्या जाने कब फिर यह बरसाती सांझ मिले,

गठरी में बांध दो फुहारें-

पता नहीं कण्ठ कहां रुंध जाए भीड में,

जेबों में डाल दो मल्हारें,

स्वयं छोड देंगे हम, गुंजित नभ मंच ये-

दे दो एकांत जरा

वाह-वाह ले लो।

हट कर हरियाली से दूर चले जाएंगे-

दूर किसी अनजाने देश में,

जहाँ छूट जाएंगे नीले आकाश कई-

होंगे हम मटमैले वेश में,

मन से तो पूछो, आवेश में न आओ तुम-

दे दो सीमंत गंध

जल-प्रवाह ले लो।

घूम रहे तेज़ समय के पहिए देखो तो-

व्यक्ति और मौसम की बात क्या,

पानी में चली गई वय की यह गेंद तो-

वह भी फिर आएगी हाथ क्या

करो नहीं झूठा प्रतिरोध मत्स्य गंधा! तुम,

होना जो शेष अभी

वह गुनाह ले लो।

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