Hindi Poem of Virendra Mishra “Shabdo se pare“ , “शब्दों से परे” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

शब्दों से परे

Shabdo se pare

शब्दों से परे-परे

मन के घन भरे-भरे

वर्षा की भूमिका कब से तैयार है

हर मौसम बूंद का संचित विस्तार है

उत्सुक ॠतुराजों की चिंता अब कौन करे

पीड़ा अनुभूति है वह कोई व्यक्ति नहीं

दुख है वर्णनातीत संभव अभिव्यक्ति नहीं

बादल युग आया है जंगल हैं हरे-हरे

मन का तो सरोकार है केवल याद से

पहुँचते हैं द्वार-द्वार कितने ही हादसे

भरी-भरी आँखों में सपने हैं डरे-डरे

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