आखिरी दरवाजा
Akhari Darvaja
एक फकीर था| वह भीख मांगकर अपनी गुजर-बसर किया करता था| भीख मांगते-मांगते वह बूढ़ा हो गया| उसकी आंखों से कम दिखने लगा| एक दिन भीख मांगते हुए वह एक जगह पहुंचा और आवाज लगाई| किसी ने कहा – आगे बढ़ो! यह ऐसे आदमी का घर नहीं है, जो तुम्हें कुछ दे सकें|
फकीर ने पूछा – भैया! आखिर इस घर का मालिक कौन है, जो किसी को कुछ नहीं देता?
उस आदमी ने कहा – अरे पागल! तू इतना भी नहीं जनता कि यह मस्जिद है? इस घर का मालिक खुद अल्लाह है|
फकीर के भीतर से तभी कोई बोल उठा – यह लो आखिरी दरवाजा आ गया| इससे आगे अब और कोई दरवाजा कहां है?
इतना सुनकर फकीर ने कहा – अब मैं यहां से खाली हाथ नहीं लौटूंगा| जो यहां से खाली हाथ लौट गए, उनके भरे हाथों की भी क्या कीमत है?
फकीर वहीं रुक गया और फिर कभी कहीं न गया| कुछ समय बाद जब उस बूढ़े फकीर का अंतिम क्षण आया तो लोगों ने देखा, वह उस समय भी मस्ती में नाच रहा था|