Hindi Short Story and Hindi Moral Story on “Bhramjal” , “भ्रमजाल” Complete Hindi Prernadayak Story for Class 9, Class 10 and Class 12.

भ्रमजाल

Bhramjal

 

मिथिला नगरी के राजा जनक थे|

एक रात वे अपने महल में सो रहे थे, तभी उन्होंने एक सपना देखा कि उनके राज्य में विप्लव हो गया है और प्रजा ने उन्हें नगर से निकाल दिया है|

भूखे-प्यासे वे इधर-उधर घूम रहे थे कि उन्हें एक सेठ की हवेली के बाहर खिचड़ी का सदाव्रत बंटता दिखाई दिया| वे वहां गए और मिट्टी के बर्तन में थोड़ी-सी खिचड़ी ले आए|

जैसे ही वे खाने बैठे कि दो गाय लड़ती हुई वहां आईं|

बीच-बचाव करने के लिए वे दौड़े| उनकी टक्कर में खिचड़ी का बर्तन फूट गया और सारी खिचड़ी मिट्टी में मिल गई|

राजा निराश हो गए और दुख से रोने-बिलखने लगे, तभी अचानक उनकी आंखें खुल गईं| सवेरा हो गया था और उनके दरबार के भाट ‘महाराज की जय’ के नारे लगा रहे थे|

राजा चकित थे, आखिर सच क्या है! सपने की बात या जय-जयकार के नारे? खिचड़ी के लिए उनका रोना, या इतना बड़ा राजा होना?

जब वह दरबार में गए तो उन्होंने वहां उपस्थित ज्योतिषियों और पण्डितों को सारी बात बताकर पूछा कि सच क्या है?

राजा की शंका का कोई भी समाधान नहीं कर पाया| चारों ओर सन्नाटा छा गया|

तभी परम ज्ञानी अष्टावक्र वहां आए|

राजा ने वही प्रश्न परमज्ञानी अष्टावक्र से किया|

उन्होंने उत्तर दिया – राजन, न वह सच्चा था न ही यह सच्चा है| सपना तो एक भ्रमजाल था, यह संसार भी एक भ्रमजाल है| न सपना शाश्वत था, न दुनिया का यह भोग और वैभव ही शाश्वत है|

 

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