Hindi Short Story and Hindi Moral Story on “Budh ki Sikhavan” , “बुद्ध की सिखावन” Hindi Prernadayak Story for Class 9, Class 10 and Class 12.

बुद्ध की सिखावन

Budh ki Sikhavan

 

 

भगवान् बुद्ध की धर्म-सभा में एक व्यक्ति रोज जाया करता था और उनके प्रवचन सुना करता था| उसका यह क्रम एक महीने तक चला, लेकिन उसके जीवन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा| बुद्ध बार-बार समझाते थे – लोभ, द्वेष और मोह, पाप के मूल हैं| इन्हें त्यागो| पर वह बेचारा इन बुराइयों से बचना तो दूर इनमें और फंसता ही जा रहा था| बुद्ध कहते थे – क्रोध करने वाले पर जो क्रोध करता है, उससे उसका ही अहित होता है, पर जो क्रोध का जवाब क्रोध से नहीं देता, वह एक भारी युद्ध जीत लेता है| पर उस व्यक्ति का उग्र स्वभाव तो उग्रतर होता जा रहा था|

 

हैरान होकर वह बुद्ध के पास गया और उन्हें प्रणाम-निवेदन करके बोला – भंते! एक महीने से मैं आपके सुंदर प्रवचन बराबर सुन रहा हूं, लेकिन उनका जरा भी असर मुझ पर नहीं पड़ा|

 

बुद्ध ने मुस्कराकर उसकी ओर देखा और कहा – अच्छा, कहां के रहने वाले हो?

 

श्रावस्ती का|

 

यहां राजगृह से श्रावस्ती कितनी दूर है?

 

उसने बता दिया|

 

कैसे जाते हो वहां?

 

सवारी से|

 

कितना समय लगता है?

 

इतना| उसने हिसाब लगाकर बता दिया|

 

ठीक| अब यह बताओ यहां बैठे-बैठे राजगृह पहुंच गए|

 

यह कैसे हो सकता है? वहां पहुचंने के लिए तो चलना होगा|

 

बुद्ध ने बड़े प्यार से कहा – तुमने सही कहा| चलने पर ही मंजिल पर पहुंचा जा सकता है| इसी तरह अच्छी बातों का असर तभी पड़ता है, जब उन पर अमल किया जाए|

 

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