कछुआ गुरु
Kachua Guru
किसी नगर में गंगा के किनारे एक बूढ़ा आदमी रहता था| उसने अपनी छोटी-सी झोंपड़ी बना ली थी और एक कछुआ पाल रखा था| वह दोपहर को रोटी मांगने जाता तो कुछ चने भी ले आता और उन्हें भिगोकर कछुए को खिला देता|
एक दिन एक आदमी उसके पास आया| कछुए को देखकर बोला – आपने यह क्या गंदा जीव पाल रखा है| इसे फेंक दो|
बूढ़े को उसकी बात सुनकर बड़ा बुरा लगा| उसने कहा – तुम मेरे गुरु का अपमान करते हो!
वह आदमी बोला – गुरु का अपमान?
जी हां| बूढ़े ने कहा – यह मेरा गुरु ही है| देखते नहीं, जरा भी आहट होती है तो यह अपने सारे अंग सिकोड़ लेता है| यह हमें हर घड़ी सिखाता रहता है कि लोभ-लालच आए तो अपने हाथ पैर सिकोड़ लो, बुराई से बचो, ये ही बातें तो गुरु कहा करते हैं|