नेकी का इनाम
Neki Ka Inam
बुलबुल बहुत ही भोली-भाली लड़की थी | छल-कपट उसे छू तक नहीं गया था | उसके स्वभाव के विपरीत उसकी एक बहन थी – नाम था रीना | रीना चालाक, मक्कार और आलसी थी |
बुलबुल के साथ प्रकृति ने बहुत बड़ा अन्याय किया था, उसकी मां बचपन में ही परलोक सिधार गई थी | परिवार में बुलबुल की सौतेली मां और सौतेली बहन रीना ही थी | उसके पिता गांव के बाहर काम करते थे | साल में एक बार ही घर आते थे |
बुलबुल की मां बुलबुल को जरा भी प्यार नहीं करती थी | सारा घर का काम बुलबुल से ही कराती थी | रीना और मां दिन भर पलंग पर बैठकर मस्ती करतीं और खाती-पीती रहतीं | बुलबुल बेचारी सारा दिन काम करती, परंतु मां उसे रूखा-सूखा ही खाने को देती | लेकिन बुलबुल फिर भी अपनी मां से कोई शिकायत नहीं करती थी |
रीना भी अपनी मां की आदत का खूब लाभ उठाती थी | जब-तक मौका पाकर बुलबुल की झूठी शिकायत मां से करती रहती थी | मां इस वजह से बुलबुल की पिटाई करती थी |
एक दिन बुलबुल काम करके थक गई थी | उसे भूख लग रही थी | भूख से उसके पेट में दर्द होने लगा था | उसने मां से कहा – मां, मेरे पेट में जोर का दर्द है, कुछ खाने को दे दो |
मां बोली – पेट में दर्द है और खाने को मांग रही है | खाने से तो पेट दर्द और भी बढ़ जाएगा |
मां के भोजन न देने से बुलबुल भीतर ही भीतर बहुत दुखी थी, परंतु उसने मां से कुछ नहीं कहा और चुपचाप सारा दिन घर का काम करती रही | उसकी आंखों से आंसू बहने लगे थे | परंतु उन आंसुओं को पोंछने वाला कोई न था |
आधी रात बीत जाने पर भी बुलबुल बेचारी सो न सकी और उसने घर छोड़ने का फैसला कर लिया | वह रात्रि के अंधेरे में चुपचाप घर से निकल पड़ी और चलते-चलते एक जंगल में पहुंच गई | उसे जोर की भूख लगी थी | सामने ही जामुन का पेड़ था, वह जैसे-तैसे उस पर चढ़ गई और जामुन खाने लगी | पेट भर जाने पर वह नीचे उतर आई |
अब तक दिन निकल चुका था | वह जंगल में इधर-उधर खेलती रही | बुलबुल खुश थी कि आज उसे रोकने-टोकने वाला कोई नहीं था | खेलने में उसे बड़ा आनन्द आ रहा था, क्योंकि घर पर खेलना उसके नसीब में न था |
रात्रि होने पर बुलबुल को डर लगने लगा | उसे अंधेरे से डर लग रहा था अत: वह एक कोने में दुबक कर बैठ गई | थोड़ी ही देर में उसे सर्दी-सी महसूस होने लगी | ज्यों-ज्यों रात्रि बीत रही थी, ठंड बढ़ती जा रही थी | बुलबुल स्वयं को बचाने के लिए सिकुड़ती जा रही थी | उसे कंपकंपी आ रही थी, अत:उसने आंखें बंद कर लीं और सोने का प्रयास करने लगी | परंतु कुछ ही क्षण में उसे अपने सामने तेज रोशनी सी महसूस हुई |
बुलबुल ने आंखें खोलीं तो देखा कि सामने एक बूढ़ी औरत बाल खोले खड़ी थी | उसने सफेद साड़ी पहनी हुई थी | उसके बाल भी सफेद थे | बुलबुल उसे देखकर घबराने लगी, परंतु वह औरत बोली – बेटी घबराओ नहीं, तुम्हारा क्या नाम है ? मैं शरद् ऋतु हूं | मेरे आने से हर तरफ सर्दी बढ़ जाती है, क्या तुम्हें सर्दी अच्छी लगती है ?
बुलबुल ने कहा – मेरा नाम बुलबुल है | मुझे सर्दी की ऋतु में बहुत आनंद आता है | सर्दी के फल संतरे, सेब अंगूर, सभी मुझे अच्छे लगते हैं | मुझे सर्दियों में धूप में खेलना और सोना बहुत अच्छा लगता है | तुम बहुत अच्छी हो मां |
बुलबुल की बात सुनकर सर्दी खुश हो गई और बुलबुल को एक मोटा मखमली कम्बल देते हुए बोली – लो यह ओढ़ लो | तुम्हें सर्दी लग रही है | यह थैली रख लो, इसमें ढेर सारा धन और कीमती गहने हैं | यह तुम्हारे लिए मेरा उपहार है, ये तुम्हारी जिन्दगी में काम आएंगे |
सर्दी की बुढ़िया बुलबुल को उपहार देकर अदृश्य हो गई | बुलबुल सारे उपहार पाकर बेहद खुश हुई | उसने थैली को बगल में दबा लिया और कम्बल ओढ़कर सोने का प्रयत्न करने लगी | कम्बल की गर्माहट से कुछ ही क्षणों में बुलबुल को नींद आ गई |
थोड़ी देर में बुलबुल को गर्मी-सी महसूस होने लगी | बुलबुल ने कम्बल उठाकर आंखें खोलीं तो देखा कि एक सुंदर व जवान युवती खड़ी थी | उस युवती ने गहरे हरे व पीले वस्त्र पहने हुए थे | उसकी आंखों में चमक थी | उसने बुलबुल को देखकर कहा – क्या तुम जानती हो कि मैं कौन हूं ?
बुलबुल ने न में सिर हिलाया तो युवती बोली – मैं ग्रीष्म सुंदरी हूं | मेरे आने से गर्मियों की ऋतु आरंभ हो जाती है | अच्छा, यह बताओ कि तुम्हें गर्मी की ऋतु कैसी लगती है |
बुलबुल को खूब गर्मी लगने लगी थी | वह कंबल को एक तरफ खिसकाते हुए बोली – ग्रीष्म ऋतु में तो मुझे बहुत आनंद आता है | गर्मियों में आम, तरबूज, खरबूजे सभी कुछ खाने में बेहद आनंद आता है | मैं तो कच्चे आम भी पेड़ों से तोड़कर खूब खाती हूं और हां आइसक्रीम का मजा तो गर्मियों में ही आता है |सच, मुझे ग्रीष्म ऋतु बहुत पसंद है |
बुलबुल की बात सुनकर ग्रीष्म खिलखिलाकर हंस पड़ी और बोली – सच, तुम बहुत प्यारी लड़की हो, तुमने मेरा दिल खुश कर दिया | मैं तुम्हें कुछ इनाम देना चाहती हूं | यह लो यह प्लेट तुम्हारे लिए है | इस प्लेट में उंगली रखकर जो खाने की इच्छा करोगी, वही हाजिर हो जाएगा |
यह कहकर ग्रीष्म सुंदरी गायब हो गई | बुलबुल बहुत खुश थी कि दो ऋतुएं उससे प्रसन्न होकर इनाम दे गई थीं | बुलबुल ने घमंड करना नहीं सीखा था | वह शांत स्वभाव की थी | वह सोने का प्रयास करने लगी, तभी उसे चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई पड़ी | बुलबुल ने महसूस किया कि सुबह होने वाली है | वह रात को जागती रही थी, अत: उसे भूख महसूस हो रही थी |
बुलबुल ने प्लेट निकाल कर उस पर अपनी उंगली रख दी और इच्छा की कि उसके लिए दूध हाजिर हो जाए | उसने आंखें खोलीं तो देखा कि प्लेट में दूध भरा गिलास रखा था |
बुलबुल दूध खत्म करने ही वाली थी कि उस यूं महसूस हुआ कि उसके ऊपर पानी की बूंदें टपक रही हैं | बुलबुल ने सिर ऊपर उठाया तो देखा कि एक सुंदर स्त्री हरे कपड़े पहने खड़ी थी | वह स्त्री बुलबुल के काफी पास आ गई थी | उसके कपड़े गीले थे और बालों से पानी टपक रहा था | वह बोली – बुलबुल क्या तुम जानती हो कि मैं कौन हूं ? मैं बताती हूं कि मैं कौन हूं ?
बुलबुल सुनकर थोड़ा हैरानी से देखने लगी, तभी स्त्री बोली – मैं वर्षा ऋतु हूं | मेरे आने से चारों ओर हरियाली छा जाती है | हर पेड़-पौधे में जान आ जाती है | अच्छा, तुम बताओ कि तुम्हें बरसात का मौसम कैसा लगता है ?
बुलबुल हंसते हुए बोली – अरे बारिश में तो मुझे बेहद आनंद आता है | मैं बारिश में खूब खेलती हूं, नृत्य करती हूं | पानी में कागज की नाव डालकर उनके पीछे-पीछे जाने में मुझे बहुत अच्छा लगता है | वर्षा ऋतु में मीठे जामुन मुझे बहुत भाते हैं |
वर्षा ऋतु बोली – यह बताओ कि क्या तुम्हारी मां तुम्हें वर्षा में नृत्य करने देती है ? क्या वह तुम्हें प्यार करती है ?
बुलबुल बोली – क्यों नहीं, मेरी मां बहुत अच्छी है और मुझे बहुत प्यार करती है | वह मुझे किसी काम को मना नहीं करती | मुझे मां के पास जाना है |
यह कहकर बुलबुल रोने लगी | उसे मां की याद आने लगी थी |
वर्षा ऋतु बोली – बेटी रोओ नहीं | मैं तुम्हें यह चटाई देती हूं | इस पर बैठकर तुम बिल्कुल अभी अपनी मां के पास पहुंच जाओगी | यह अंगूठी रख लोग जो चमत्कारी है और सदैव तुम्हें मुश्किलों से बचाएगी |
इतना कहकर वर्षा ऋतु ओझल हो गई | बुलबुल को अपनी मां की याद सता रही थी | उसने चटाई बिछाई और अपना सारा सामान लेकर उसके ऊपर बैठ गई | कुछ ही क्षणों में वह अपने घर पहुंच गई |
बुलबुल ने देखा कि उसकी मां पड़ोसिनों को बुलबुल के गायब होने के बारे में बता रही थी, परंतु बुलबुल को सामने देखकर दुखी हो गई परंतु वह कुछ नहीं कर सकती थी | बुलबुल ने ज्यों ही सारे उपहार मां को दिए तो मां खुश हो गई और उनके बारे में विस्तार से पूछने लगी |
बुलबुल ने सारी बातें मां को सच बता दीं | मां ने बुलबुल की अंगूठी जबरदस्ती उतारने की कोशिश की परंतु उतार न सकी | मां को लालच आ गया और उसने रीना को भी जंगल भेजने का निश्चय किया |
रीना को जंगल जाने में डर लग रहा था, परंतु मां के कहने से व नए उपहारों के लालच में वह जंगल की ओर रवाना हो गई | वह चलते-चलते वहां पहुंच गई जहां बुलबुल गई थी |
रात को उसी प्रकार शरद् ऋतु स्त्री के वेश में आई और अपना प्रश्न रीना से पूछा कि मैं कैसी लगती हूं | रीना ने कभी मीठा बोलना सीखा ही न था | उसने सोचा कि बुलबुल को सच बताने का इनाम मिला है | वह तुनकते हुए बोली – मुझे सर्दी की ऋतु बिल्कुल अच्छी नहीं लगती | इस मौसम में धूप नहीं निकलती और मुझे धूप में बैठने की इच्छा होती है | ज्यादा सर्दी के कारण मैं अपनी सहेलियों के साथ खेल भी नहीं पाती | सर्दी में मैं बिस्तर में ही बैठी रहती हूं | मेरी बहन बुलबुल मेरा काम करती रहती है |
सर्दी ऋतु क्रोधित हो उठी | उसने रीना को एक थैली और कम्बल दिया और गायब हो गई | रीना ने कम्बल ओढ़ा तो उसे यूं लगने लगा कि उसे कीड़े काट रहे हों | उसने देखा कि थैली में भी कीड़े भरे थे | थैली को फेंक कर वह सोने का प्रयास करने लगी, तभी ग्रीष्म सुंदरी आ गई और पूछने लगी कि उसे गर्मी ऋतु कैसी लगती है |
रीना बोली – यह ऋतु तो बड़ी ही गंदी होती है | हरदम पसीना आता रहता है, मुझे तो ज्यादा गर्मी के कारण खेलने को भी नहीं मिलता | गर्मी के पसीने से भरे मेरे नए कपड़े खराब हो जाते हैं | गर्म लू के कारण मेरी तबीयत खराब हो जाती है |
ग्रीष्म सुंदरी ने क्रोधित होकर उसे एक प्लेट दी और गायब हो गई | रीना ने प्लेट में ज्यों ही हाथ रखा प्लेट में तरह-तरह के कीड़े रेंगने लगे | रीना ने घबरा कर प्लेट फेंक दी | चारों तरफ कीड़े रेंगने लगे तो रीना को डर लगने लगा |
तभी वर्षा सुंदरी आ गई | उसने भी रीना से वही सवाल पूछा कि उसे वर्षा ऋतु कैसी लगती है | रीना परेशान थी और समझ नहीं पा रही थी कि क्या जवाब दूं | वह बोली – बारिश का मौसम अभी ऋतुओं से गंदा है | जगह-जगह पानी भर जाता है और मैं खेल नहीं पाती | कभी-कभी स्कूल भी नहीं जा पाती | बारिश में बदन चिपचिपा रहता है | खाने की चीजें सड़ने लगती हैं और कुछ चीजें सीलकर बेस्वाद हो जाती हैं | सच मुझे वर्षा ऋतु से नफरत है |
रीना का उत्तर सुनकर वर्षा ऋतु क्रोधित हो गई | उसने रीना को अंगूठी व चटाई दी और अन्तर्धान हो गई | रीना ज्यों ही चटाई पर बैठी उसे महसूस हुआ कि उसे आग जैसी तपिश महसूस हो रही है | तभी उसने अंगूठी पहनी | अंगूठी से तेज आग निकली और रीना लपटों से घिर गई |
तभी रीना की मां वहां पहुंच गई, उसने मुश्किल से आग को बुझाया, रीना काफी जल चुकी थी | वह मां से बोली – मां, तुमने मुझे कभी सही बातों की शिक्षा नहीं दी, मैं सदैव सबसे बुरा बोलती रही, बुलबुल को डांटती रही | तुम भी बुलबुल के साथ बुरा व्यवहार करती रहीं, तभी भगवान ने हमें यह सजा दी है |
बुलबुल आकर अपनी बहन को प्यार करने लगी | यह देखकर मां को एहसास हुआ कि बुलबुल कितनी अच्छी लड़की है, उसके साथ दुर्व्यवहार करके मैंने गलती की है | मैं मां हूं और मां के लिए सारे बच्चे एक समान होते हैं | मैंने रीना को अच्छी बातें न सिखाकर उसका भी बुरा किया और अपना भी |
मां ने निश्चय किया कि अब वह दोनों बेटियों को समान प्यार करेगी | कुछ दिन में रीना ठीक हो गई और सब मिल-जुलकर सुख से रहने लगे |