107 भाइयो की बहन होके भी अभागन थी धृतराष्ट्र की बेटी दुःशला
107 Bhaiyo ki bahan hoke bhi abhagan thi Dhritrashtra ki beti Dushla
महाभारत की ऐसी महिला पात्र जो की राजकुमारी होने के बावजूद जीवन भर दुखी रही उसका नाम दुःशला था, दुःशला गंधारी की पुत्री थी जो ऋषि व्यास की सेवा से वरदान में मिली। युयुत्सु दासी पुत्र कौरव और 100 व्यास से वरदान में मिले पुत्रो समेत कौरव कुल 101 थे और छे (छट्टा करण) पांडव थे इसके बावजूब भी वो उम्रभर अभागन रही।
बचपन तो हंसी खेल में गुजरा पर शादी के बाद से तो जैसे उसपे दुखो की बारिश सी हो गई, सिंधु नरेश जयद्रत से उसका विवाह हुआ हो की एक दो व्यक्तित्व का आदमी था। कभी कभी वो औरत के लिए पागल हो जाता था और ऐसा कहा जाता है की दुःशला को पीटता भी था। शादी के बाद दुःशला की जिंदगी नरक से भी बदतर हो गई थी।
जयद्रत ने अपने ही सालो की बीवी द्रौपदी से शादी शुदा होने पर भी शादी करनी चाही यंहा तक की अपहरण कर ले गया वो तो पांडव सामने मिल गए और उसे मार ही डालते पर द्रौपदी ने दुःशला की वजह से प्राण दान दिए। इस पर भीम ने उसे उस्तरे से मुंड दिया और सर पे पांच चोटिया छोड़ दी।
अपमानित जयद्रत वंही तपस्या में रत हो गया और दुःशला को लापता पति के रूप में जीवन जीना पड़ा, शिव से वार पाके जयद्रत घर पहुंचा और दुःशला का दुःख दूर हुआ इतने पर ही दुर्योधन के दूत ने उसे युद्ध की रणनीति के लिए बुलावे का सन्देश दे दिया। युद्ध में दुःशला के भांजे अभिमन्यु को जयद्रता ने पांडवो से पडले के रूप में मारा तो दुःशला और भी दुखी हो गई। जयद्रत जब मारा गया तो उसका सुहाग ही उजड़ गया यंहा तक की ससुर भी मर गया।
दुःशला के पुत्र को सिंधु का राजा बनाया गया, उसकी शादी हुई और वो पिता बना तो कुछ दुःख कम हुआ, पर महाभारत के पश्चात पांडवो ने अश्वमेघ यज्ञ किया और घोड़े के साथ अर्जुन चला। अर्जुन जिस दिन घोड़े के साथ न था उस दिन वो सिंधु पहुंचा और दुःशला के पुत्र ने घोडा पकड़ा और वो भी पांडव सेना के द्वारा मारा गया। जब अर्जुन को पता चला तो वो भी बहिन के साथ विलाप करने लगा तब दुःशला के पोते को राजा बनाया गया। ऐसी दुर्भागी थी दुशाला, जो की उम्र भर ही अभागिन जीती रही।