आखिर क्यों नहीं आती समुद्र में बाढ़
Akhir kyo nahi aati Samudra me badh
बहुत वर्ष पहले कृतवीर्य नामक एक बहुत पराक्रमी और दयालु राजा राज करता था। उसने अपने शासन काल के दौरान अपनी प्रजा को कभी कोई कष्ट नही होने दिया तथा वह हमेसा जरुरतमंदो को दान दिया करता था जिस कारण उसकी कृति हर जगह फैलने लगी थी। भृगुवंशीय ब्राह्मण राजा के पुरोहित थे अतः राजा उनकी सेवा में कोई कमी नही आने देता तथा उन्हें उनके जीवन यापन के लिए भरपूर धन देता। कृतवीर्य की जब मृत्यु हुई तब उनके पुत्रो के सामने राज्य को चलाने को लेकर समस्या उतपन्न हो गई क्योकि उनके पिता कृतवीर्य द्वारा राजदरबार का सारा धन अपने ब्राह्मण पुरोहितो और गरीबो में लूटा देने के कारण खाली हो गया था।
तब कृतवीर्य के पुत्र भार्गव ब्राह्मणो के पास गए तथा राजकाज को पुनः संचालित करने के लिए ब्रह्मणो से उनके पिता द्वारा दिए गए दान को वापस मागने लगे परन्तु ब्राह्मणो ने उन्हें यह कह कर खाली हाथ भेज दिया की एक बार दिया गया दान कभी वापस नही होता। ब्रह्मणो के द्वारा इस तरह अपमानित हुए जाने पर राजा के पुत्रो के क्रोध की कोई सीमा नही रही तथा अपने अश्त्रों को हाथ में लेकर वे भार्गव ब्राह्मणो के आश्रम पहुंचे। अपने अश्त्रों के प्रहार से वे एक-एक कर भार्गव ब्राह्मणो का वध करने लगे तथा उनकी समस्त सम्पति को अपने अधिकार में ले लिया। किसी तरह एक गर्भवती स्त्री राजा के पुत्रो के नजरो से बचते बचाते दूर एक वन की ओर निकल आई, वह स्त्री भार्गव कुल के ऋषि उर्व की धर्मपत्नी आरुषि थी। आरुषि भागते भागते एक पत्थर से ठोकर खाकर मार्ग में गिर पड़ी तथा उसी अवस्था में उसने एक बालक को जन्म दिया। संयोगवश नजदीक ही एक ऋषि का आश्रम था जहा उन्हें आश्रय मिल गया।
आरुषि ने अपने पुत्र का नाम और्व रखा तथा जैसे जैसे और्व बढ़ा हुआ तो उसे अपने समुदाय और पिता के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ी। एक दिन जब उसे अपनी माँ से कृतवीर्य के पुत्रो के दुष्टकृतो के बारे में पता लगा तो और्व के मन में राजा के पुत्रो के प्रति द्वेषभावना उतपन्न हुई। उसने मन ही मन उनसे प्रतिशोध लेने का संकल्प लिया तथा तपश्या करने एक उच्चे पर्वत पर चला गया क्योकि उन्होंने प्रतिशोध को ध्यान में रख तपश्या करी अतः इस कारण उनका पूरा शरीर अग्नि में परिवर्तित हो गया। लोग उन्हें अग्नि मानव कहने लगे उन्होंने अपने तपश्या के बल पर राजाओ के पुत्रो का वध कर दिया परन्तु उनका क्रोध फिर भी शांत नही हुआ तो उन्होंने पुरे पृथ्वी को ही भष्म करने की ठान ली। देवताओ को जब यह बात ज्ञात हुई तो वे अत्यंत चिंतित हो गए तथा उन्होंने और्व के पितरो को और्व को ऐसा करने से रोकने के लिए कहा तथा उसके क्रोध की अग्नि को और्व के शरीर के अंदर ही शांत करने को कहा। तब पितरो के आज्ञा से और्व ने अपने क्रोधाग्नि को अपने शरीर के अंदर है समाहित कर लिया।
एक बार और्व के ऋषि मित्रो ने उन्हें विवाह करने व वंश आगे बढ़ाने का सुझाव दिया इस पर और्व बोले की में विवाह नही कर सकता क्योकि मेरे अंदर विशाल अग्नि का स्रोत समाया हुआ है अगर में विवाह करता हु तो मेरे पुत्र साक्षात अग्नि के होंगे। इस पर भी जब उनके मित्र ने वही अनुरोध फिर से दोहराया तो उन्हें वास्तविकता से परिचित कराने के लिए और्व ने अपने शरीर पर वार किया। तभी और्व के शरीर से भयंकर और बहुत तेज आवाजे आने लगी, मैं भूखा हु, मुझे बहार आने दो में संसार को अपने में समाके अपनी भूख मिटाना चाहता हु। यह आवाजे इतनी भयंकर थी की ब्रह्मा जी को भी इस आवाज को सुन अपनी ध्यान मुद्रा तोड़नी पड़ी। ब्रह्मा जी और्व के समक्ष प्रकट होकर बोले की तुम्हारे इस क्रोध की अग्नि को संभालने का सामर्थ्य केवल समुद्र में है अतः आज से तुम्हार निवास स्थान समुद्र में होगा तथा तुम्हार मुख अश्व के जैसा होगा जिस से अग्नि बहार निकलेगी। जब सृष्टि का एक कल्प का अंत हो जायेगा तब प्रलय के दौरान तुम्हे पूरी सृष्टि को भष्म करने का मनचाहा अवसर मिलेगा। उसी दिन से ऋषि और्व का निवास स्थान समुद्र में हो गया तथा अब वे समुद्र में रहते हुए समुद्र में बढ़ते जल को अपनी अग्नि के द्वारा भाप बना कर उडा देते है। ऋषि और्व के अग्नि के कारण ही समुद्र का तल एक समान बना हुआ है तथा समुद्र में कभी बाढ़ नही आती !