भीष्म ने कृष्ण को कर दिया था प्रतिज्ञा तोड़ने पर मजबूर
Bhishm ne Krishan ko kar diya tha pratigya todne par majboor
बात तब की है जब महाभारत के युद्ध के लिए अपनी तरफ से लड़ने के लिए कौरव और पांडव समर्थन जूता रहे थे, द्वारका के राजा कृष्ण के पास दोनों ही पहुंचे पर दुर्योधन अर्जुन से पहले पहुँच गया।
पहले पहुँचने के चलते कृष्ण ने उसे पहले मांगने का अवसर दिया और अपने समर्थन के दो हिस्से किये एक तरफ तो कृष्ण की पूरी अक्षोणी सेना थी तो दूसरी तरफ कृष्ण अकेले निहत्थे।
दोनों ही मित्र पक्ष होने के कारण कृष्ण ने प्रतिज्ञा की के वो युद्ध के दौरान शास्त्र नही उठाएंगे, ऐसे में लोभ वष दुर्योधन ने कृष्ण की सेना का समर्थन ही मांग लिया निहत्थे कृष्ण उसके किस काम के थे। इस पर कृष्ण मुस्कुराये और अर्जुन ने तब कृष्ण को अपने सारथि के रूप में मांग लिया, जब दुर्योधन हस्तिनापुर पहुंचा तो शकुनि ने उसे बहुत दुत्कारा और कहा की कृष्ण निहत्था ही सब पे भारी पड़ेगा।
लेकिन जब युद्ध का तीसरा दिन शुरू हुआ और भीष्म ने गरुड़ व्यूवरचना से पांडवो को घेरा तो सारी पांडव सेना और मित्र देश के राजा भाग खड़े हुए, अर्जुन पितामह से प्रेम वश उनपे पूरी शक्ति से हमला नही कर रहा था और इस कारन भीष्म और उग्र थे उन्होंने कृष्ण अर्जुन पे वाणो की ऐसी वर्षा की के दोनों घायल हो गए।
तब पर भी अर्जुन को क्रोध न आया और उसका मोह न टुटा तो कृष्ण ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ते हुए सुदर्शन चक्र उठा लिया और भीष्म और कौरवो की तरफ ऐसे बढे की कौरवो में जान का भय पैदा हो गया।
हालाँकि भीष्म विचलित नही हुए और अपने हथियार डाल के कृष्ण के आगे नतमस्तक हो गए और उन्हें नमस्कार किया, बोले आज मेरा पुरुषार्थ सिद्ध हो गया मैंने स्वयं भगवन को अपनी प्रतिज्ञा तुड़वाने पर विवश कर दिया।
इतने में अर्जुन पीछे से दौड़ते हुए आया और कृष्ण से माफ़ी मांगी और अपनी प्रतिज्ञा न तोड़ने की गुहार की और तब जाके कृष्ण का क्रोध शांत हुआ, तब से अर्जुन कुछ लोहा लेने लगा लेकिन कृष्ण के विराट स्वरुप दिखा गीता ज्ञान देने के बाद ही वो भीष्म को मार पाया।