Hindi Short Story and Hindi Poranik kathaye on “Danveer Vikramaditya” , “दानवीर विक्रमादित्य” Hindi Prernadayak Story for All Classes.

दानवीर विक्रमादित्य

Danveer Vikramaditya 

एक दिन राजा विक्रमादित्य दरबार को सम्बोधित कर रहे थे तभी किसी ने सूचना दी कि एक ब्राह्मण उनसे मिलना चाहता है। विक्रमादित्य ने कहा कि ब्राह्मण को अन्दर लाया जाए। जब ब्राह्मण उनसे मिला तो विक्रम ने उसके आने का प्रयोजन पूछा। ब्राह्मण ने कहा कि वह किसी दान की इच्छा से नहीं आया है, बल्कि उन्हें कुछ बतलाने आया है। उसने बतलाया कि मानसरोवर में सूर्योदय होते ही एक खम्भा प्रकट होता है जो सूर्य का प्रकाश ज्यों-ज्यों फैलता है ऊपर उठता चला जाता है और जब सूर्य की गर्मी अपनी पराकाष्ठा पर होती है तो सूर्य को स्पर्श करता है। ज्यों-ज्यों सूर्य की गर्मी घटती है छोटा होता जाता है तथा सूर्यास्त होते ही जल में विलीन हो जाता है।

विक्रम के मन में जिज्ञासा हुई कि ब्राह्मण का इससे अभिप्राय क्या है। ब्राह्मण उनकी जिज्ञासा को भाँप गया और उसने बतलाया कि भगवान इन्द्र का दूत बनकर वह आया है ताकि उनके आत्मविश्वास की रक्षा विक्रम कर सकें। उसने कहा कि सूर्य देवता को घमण्ड है कि समुद्र देवता को छोड़कर पूरे ब्रह्माण्ड में कोई भी उनकी गर्मी को सहन नहीं कर सकता।

देवराज इन्द्र उनकी इस बात से सहमत नहीं हैं। उनका मानना हे कि उनकी अनुकम्पा प्राप्त मृत्युलोक का एक राजा सूर्य की गर्मी की परवाह न करके उनके निकट जा सकता है। वह राजा आप हैं। राजा विक्रमादित्य को अब सारी बात समझ में आ गई। उन्होंने सोच लिया कि प्राणोत्सर्ग करके भी सूर्य भगवान को समीप से जाकर नमस्कार करेंगे तथा देवराज के आत्मविश्वास की रक्षा करेंगे। उन्होंने ब्राह्मण को समुचित दान-दक्षिणा देकर विदा किया तथा अपनी योजना को कार्य-रुप देने का उपाय सोचने लगे। उन्हें इस बात की खुशी थी कि देवतागण भी उन्हें योग्य समझते हैं। भोर होने पर दूसरे दिन वे अपना राज्य छोड़कर चल पड़े। एकान्त में उन्होंने माँ काली द्वारा प्रदत्त दोनों बेतालों का स्मरण किया। दोनों बेताल तत्क्षण उपस्थित हो गए।

विक्रम को उन्होंने बताया कि उन्हें उस खम्भे के बारे में सब कुछ पता है। दोनों बेताल उन्हें मानसरोवर के तट पर लाए। रात उन्होंने हरियाली से भरी जगह पर काटी और भोर होते ही उस जगह पर नज़र टिका दी जहाँ से खम्भा प्रकट होता। सूर्य की किरणों ने ज्योंहि मानसरोवर के जल को छुआ कि एक खम्भा प्रकट हुआ। विक्रम तुरन्त तैरकर उस खम्भे तक पहुँचे। खम्भे पर ज्योंहि विक्रम चढ़े जल में हलचल हुई और लहरें उठकर विक्रम के पाँव छूने लगीं। ज्यों-ज्यों सूर्य की गर्मी बढी, खम्भा बढ़ता रहा। दोपहर आते-आते खम्भा सूर्य के बिल्कुल करीब आ गया। तब तक विक्रम का शरीर जलकर बिल्कुल राख हो गया था। सूर्य भगवान ने जब खम्भे पर एक मानव को जला हुआ पाया तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि विक्रम को छोड़कर कोई दूसरा नहीं होगा। उन्होंने भगवान इन्द्र के दावे को बिल्कुल सच पाया।

उन्होंने अमृत की बून्दों से विक्रम को जीवित किया तथा अपने स्वर्ण कुण्डल उतारकर उन्हें भेंट कर दिए। उन कुण्डलों की विशेषता थी कि कोई भी इच्छित वस्तु वे कभी भी प्रदान कर देते। सूर्य देव ने अपना रथ अस्ताचल की दिशा में बढ़ाया तो खम्भा घटने लगा। सूर्यास्त होते ही खम्भा पूरी तरह घट गया और विक्रम जल पर तैरने लगे। तैरकर सरोवर के किनारे आए और दोनों बेतालों का स्मरण किया। बेताल उन्हें फिर उसी जगह लाए जहाँ से उन्हें सरोवर ले गए थे। विक्रम पैदल अपने महल की दिशा में चल पड़े। कुछ ही दूर पर एक ब्राह्मण मिला जिसने उनसे वे कुण्डल मांग लिए। विक्रम ने बेहिचक उसे दोनों कुण्डल दे दिए। उन्हें बिल्कुल मलाल नहीं हुआ।

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