सती ने सतीत्व से भगवान विष्णु को भी बना दिया था पत्थर का बुत
Sati ne Satitav se Bhagvan Vishnu ko bhi bna diya tha patthar ka but
तुलसी की पुरे भारत भर में पूजा होती है और उन्हें भगवान के भोग में चढ़ाया जाता है पर वो कौन है और उन्हें ये उपमा क्यों मिली जानिए हमारे साथ। तुलसी भगवान शिव और विष्णु की परम भक्त थी एक बार वो गणेश पर मोहित हो गई और उन्होंने उनसे शादी का प्रस्ताव रखा पर गणेश ने ब्रह्मचर्य का हवाला देकर प्रस्ताव ठुकरा दिया तब उन्होंने गणेश को दो शादिया होने का श्राप दिया और गणेश की ऋद्धि सिद्धि से शादी हुई। गणेश ने भी बदले में श्राप दिया की वो राक्षस कुल में जन्म लेगी और राक्षस की माँ बनेगी।
फलस्वरूप राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था। वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु जी की परम भक्त थी। बड़े ही प्रेम से भगवान की पूजा किया करती थी। जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा सती स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी।
एक बार देवो और दानवों में युद्ध हुआ, जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने जीत के लिए अनुष्ठान किया, और जब उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान विष्णु जी के पास गए।
सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि-वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं। भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पहुंच गए जैसे ही सती ने अपने पति को देखा, उन्होंने अनुष्ठान रोक दिया और उनके चरण छू लिए। जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओं ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया। उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब सती ने देखा कि पति का सिर तो कटा पड़ा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
उन्होंने पूछा – आप कौन हैं जिसका स्पर्श मैंने किया,तब भगवान अपने रूप में आ गए पर वे निरुत्तर थे, वृंदा समझ गई। उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप (काले सालिग्राम) पत्थर के हो जाओ,भगवान तुंरत पत्थर के हो गए। सभी देवता हाहाकार करने लगे। लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्राथना करने लगीं तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गई। उनके बरते शंखचूड़ भी बाद में शिव के हाथो मारे गए।
उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा- आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और मैं बिना तुलसी जी के प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा। तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।