बड़ा कौन
Bada kaun
भूख, प्यास, नींद और आशा चार बहनें थीं, एक बार उनमें लड़ाई हो गई, लड़ती-झगड़ती वे राजा के पास पहुंचीं, एक ने कहा, मैं बड़ी हूं, दूसरी ने कहा, मैं बड़ी हूं, तीसरी ने कहा, मैं बड़ी हूं, चौथी ने कहा, मैं बड़ी हूं, सबसे पहले राजा ने भूख से पूछा, क्यों बहन, तुम कैसे बड़ी हो ? भूख बोली, मैं इसलिए बड़ी हूं, क्योंकि मेरे कारण ही घर में चूल्हे जलते हैं, पांचों पकवान बनते हैं और वे जब मुझे थाल सजाकर देते हैं, तब मैं खाती हूं, नहीं तो खाऊं ही नहीं, राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा, जाओ, राज्य भर में मुनादी करा दो कि कोई अपने घर में चूल्हे न जलाये, पांचों पकवान न बनाये, थाल न सजाये, भूख लगेगी तो भूख कहां जायगी ?
सारा दिन बीता, आधी रात बीती, भूख को भूख लगी, उसने यहां खोजा, वहां खोजा; लेकिन खाने को कहीं नहीं मिला, लाचार होकर वह घर में पड़े बासी टुकड़े खाने लगी, प्यास ने यह देखा, तो वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास पहुंची, बोली, राजा! राजा ! भूख हार गई, वह बासी टुकड़े खा रही है, देखिए, बड़ी तो मैं हूं, राजा ने पूछा, तुम कैसे बड़ी हो ? प्यास बोली, मैं बड़ी हूं क्योंकि मेरे कारण ही लोग कुएं, तालाब बनवाते हैं, बढ़िया बर्तानों में भरकर पानी रखते हैं और वे जब मुझे गिलास भरकर देते हैं, तब मैं उसे पीती हूं, नहीं तो पीऊं ही नहीं, राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा, जाओ, राज्य में मुनादी करा दो कि कोई भीअपने घर में पानी भरकर नहीं रखे, किसी का गिलास भरकर पानी न दे, कुएं-तालाबों पर पहरे बैठा दो, प्यास को प्यास लगेगी तो जायगी कहां ? सारा दिन बीता, आधी रात बीती, प्यास को प्यास लगी, वह यहां दौड़ी, वहां दौड़, लेकिन पानी की कहां एक बूंद न मिली, लाचार वह एक डबरे पर झुककर पानी पीने लगी, नींद नेदेखा तो वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास पहुंची बोली, राजा ! राजा ! प्यास हार गई, वह डबरे का पानी पी रही है, सच, बड़ी तो मैं हूं, राजा ने पूछा, तुम कैसे बड़ी हो? नींद बोली, मैं ऐसे बड़ी हूं कि लोग मेरे लिए पलंग बिछवाते हैं, उस पर बिस्तर डलवाते हैं और जब मुझे बिस्तर बिछाकर देते हैं तब मैं सोती हूं, नहीं तो सोऊं ही नहीं, राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा, जाओ, राज्य भर में यह मुनादी करा दो कोई पलंग न बनवाये, उस पर गद्दे न डलवाये ओर न बिस्तर बिछा कर रखे, नींद को नींद आयेगी तो वह जायगी कहां ?
सारा दिन बीता, आधी रात बीती, नींद को नींद आने लगी,उसने यहां ढूंढा, वहां ढूंढा, लेकिन बिस्तर कहीं नहीं मिला, लाचार वह ऊबड़-खाबड़ धरती पर सो गई, आशा ने देखा तो वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पा पहुंची, बोली, राजा ! राजा ! नींद हार गयी, वह ऊबड़-खाबड़ धरती पर सोई है, वास्तव में भूख, प्यास और नींद, इन तीनों में मैं बड़ी हूं, राजा नेपूछा, तुम कैसे बड़ी हो ? आशा बोली, मैं ऐसे बड़ी हूं कि लोग मेरी खातिर ही काम करते हैं, नौकरी-धन्धा, मेहनत और मजदूरी करते हैं, परेशानियां उठाते हैं, लेकिन आशाके दीप को बुझने नहीं देते, राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा, जाओ, राज्य में मुनादी करा दो, कोई काम न करे, नौकरी न करे, धंधा, मेहनत और मजदूरी न करे और आशा का दीप न जलाये, आशा को आश जागेगी तो वह जायेगी कहां? सारा दिन बीता, आधी रात बीती, आशा को आश जगी, वह यहां गयी, वहां गयी, लेकिन चारों ओर अंधेरा छाया हुआ था, सिर्फ एक कुम्हार टिमटिमाते दीपक के प्रकाश में काम कर रहा था, वह वहां जाकर टिक गयी, और राजा ने देखा, उसका सोने का दिया, रुपये की बाती तथा कंचन का महल बन गया, जैसे उसकी आशा पूरी हुई, वैसे सबकी हो.