Hindi Short Story, Moral Story “  Inam ka hakdar”, ” इनाम का हकदार” Hindi Motivational Story for Primary Class, Class 9, Class 10 and Class 12

इनाम का हकदार

 Inam ka hakdar

 

 राजस्थान के दक्षिण में एक छोटा सा आदिवासी गांव है राजपुर। स्वतं‍त्रता के बाद गांव में तरक्की हुई है। लोग पढ़ने-लिखने भी लगे। इसी गांव की कहानी है।

जब राजपुर में ग्राम पंचायत का गठन हुआ तो सरपंच बने गांव के ही रामप्रसाद। वे इतने अच्छे आदमी थे कि हमेशा हर आदमी की सहायता करने को तैयार रहते थे। वे गांव वालों के सुख-दु:ख में हमेशा साथ देते और उन्हें नेक सलाह दिया करते।

दिवाली में कुछ ही दिन शेष थे। रामप्रसाद ने गांव में ढिंढोरा पिटवा दिया कि इस बार दिवाली की रात जिसका घर सबसे अधिक सुंदर सजा होगा, उसे इनाम दिया जाएगा।

यह ढिंढोरा सुनते ही गांव वाले अपने-अपने घरों को सजाने में पूरी मेहनत से जुट गए।

लड़कियां मांडने बनाने के लिए खड़िया मिट्टी व गेरू इकट्ठा करने में लग गईं। बच्चे पटाखे और फुलझड़ियां जमा करने लगे। बुजुर्ग और महिलाओं ने दीये, तेल, मिठाइयां, मोमबत्तियां-कंदील खरीद लिए। सभी घरों की पुताई-सफाई में लग गए।

दिवाली की शाम तक तो राजपुर दुल्हन की तरह सज गया। सभी ने अपने घरों के अंदर व बाहर माण्डणे बनाकर जगह-जगह दीये और मोमबत्तियां जलाकर रख दीं। बाहर के पेड़ों पर कंदील लटका दिए। सारा गांव रोशनी से जगमगा उठा।

बच्चों के पटाखे-फुलझड़ियां छोड़ना शुरू कर दिया। बच्चे-बड़े सभी नए-नए कपड़ों में सजे प्रसन्न थे।

रात 8 बजे सरपंच रामप्रसाद अपने कुछ साथियों के साथ गांव की दिवाली देखने निकला।

सभी घरों को सुंदर ढंग से सजाया गया था। रामप्रसाद यह नहीं समझ पा रहा था कि किस घर की सजावट को वह सबसे सुंदर माने।

चलते-फिरते रामप्रसाद अपने साथियों के साथ जब गंगाराम के घर के सामने पहुंचा तो चौंक गया। घर के सामने और घर के अंदर सिर्फ एक-एक दीया जल रहा था।

सरपंच रामप्रसाद ने जब गंगाराम को आवाज दी तो वह बाहर आया।

रामप्रसाद ने पूछा- ‘भाई गंगाराम, पूरा गांव दीयों की रोशनी से जगमगा रहा है, पर तुम्हारे यहां सिर्फ दो ही दीये जल रहे हैं। तुमने अपना पूरा घर क्यों नहीं सजाया?‘

 ‘सरपंचजी, बात यह है कि कुछ दिन पहले हमारे पड़ोसी नारायण का लड़का मर गया था। हमारे गांव में यह रिवाज है कि जिसके यहां कोई मौत हो गई हो, उसके यहां सालभर कोई त्योहार नहीं मनाते।‘

गंगाराम आगे बोला- ‘गांव वाले ऐसे आदमी के यहां त्योहार के दिन जाना भी अशुभ मानते हैं इसीलिए नारायण और उसके घर वाले दिवाली मनाना नहीं चाह रहे थे।‘

 ‘पर सरपंचजी, मैं यह सब अंधविश्वास नहीं मानता। मैंने नारायण को समझाया और दिवाली का सारा सामान अपने पैसों से खरीदकर उसके घर दे आया। इस समय मेरी पत्नी और बच्चे वहां पर उसका घर सजा रहे हैं।‘

सरपंच रामप्रसाद ने आश्चर्य से गंगाराम को गले लगा लिया और बोला- मुझे तुम पर बहुत गर्व है। दिवाली तो सभी मनाते हैं, पर सच्ची दिवाली इस बार तुमने ही मनाई है। मैं तुम्हें ही इनाम का हकदार घोषित करता हूं।

और फिर पंचायत भवन पर अगले दिन एक समारोह हुआ जिसमें गंगाराम को सम्मानित किया गया। सरपंच रामप्रसाद ने गंगाराम का किस्सा उपस्थित लोगों को सुनाते हुए उसे पंचायत की तरफ से नि:शुल्क भूखंड देने की घोषणा की।

गंगाराम की आंखें खुशी से छलछला आईं।

 साभार- देवपुत्र  

 

 

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