Hindi Short Story, Moral Story “Sadvyohar”, ”सद्ब्योहार” Hindi Motivational Story for Primary Class, Class 9, Class 10 and Class 12

सद्ब्योहार

Sadvyohar

 एक राजा ने एक दिन स्वप्न देखा कि कोई परोपकारी साधु उससे कह रहा है कि बेटा कल रात को तुझे एक विषैला सर्प काटेगा और उसके काटने से तेरी मृत्यु हो जायेगी। वह सर्प अमुक पेड़ की जड़ में रहता है, पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेने के लिए वह तुम्हें काटेगा। प्रातःकाल राजा सोकर उठा और स्वप्न की बात पर विचार करने लगा। धर्मात्माओं को अक्सर सच्चे ही स्वप्न हुआ करते हैं। राजा धर्मात्मा था, इसलिए अपने स्वप्न की सत्यता पर उसे विश्वास था। वह विचार करने लगा कि अब आत्म- रक्षा के लिए क्या उपाय करना चाहिए? सोचते- सोचते राजा इस निर्णय पर पहुँचा कि मधुर व्यवहार से बढ़कर शत्रु को जीतने वाला और कोई हथियार इस पृथ्वी पर नहीं है। उसने सर्प के साथ मधुर व्यवहार करके उसका मन बदल देने का निश्चय किया। संध्या होते ही राजा ने उस पेड़ की जड़ से लेकर अपनी शय्या तक फूलों का बिछौना बिछवा दिया, सुगन्धित जलों का छिड़काव करवाया, मीठे दूध के कटोरे जगह- जगह रखवा दिये और सेवकों से कह दिया कि रात को जब सर्प निकले तो कोई उसे किसी प्रकार कष्ट पहुँचाने या छेड़- छाड़ करने का प्रयत्न न करे।

रात को ठीक बारह बजे सर्प अपनी बाँबी में से फुसकारता हुआ निकला और राजा के महल की तरफ चल दिया। वह जैसे- जैसे आगे बढ़ता गया, अपने लिए की गई स्वागत व्यवस्था को देख- देखकर आनन्दित होता गया। कोमल बिछौने पर लेटता हुआ मनभावनी सुगन्ध का रसास्वादन करता हुआ, स्थान- स्थान पर मीठा दूध पीता हुआ आगे बढ़ता था। क्रोध के स्थान पर सन्तोष और प्रसन्नता के भाव उसमें बढ़ने लगे। जैसे- जैसे वह आगे चलता गया, वैसे ही वैसे उसका क्रोध कम होता गया। राजमहल में जब वह प्रवेश करने लगा तो देखा कि प्रहरी और द्वारपाल सशस्त्र खड़े हैं, परन्तु उसे जरा भी हानि पहुँचाने की चेष्टा नहीं करते। यह असाधारण सौजन्य देखकर सर्प के मन में स्नेह उमड़ आया। सद्व्यवहार, नम्रता, मधुरता के जादू ने उसे मन्त्र- मुग्ध कर लिया था। कहाँ वह राजा को काटने चला था, परन्तु अब उसके लिए अपना कार्य असंभव हो गया। हानि पहुँचाने के लिए आने वाले शत्रु के साथ जिसका ऐसा मधुर व्यवहार है, उस धर्मात्मा राजा को काटूँ तो किस प्रकार काटूँ? यह प्रश्न उससे हल न हो सका। राजा के पलंग तक जाने तक सर्प का निश्चय पूर्ण रूप से बदल गया।

सर्प के आगमन की राजा प्रतीक्षा कर रहा था। नियत समय से कुछ विलम्ब में वह पहुँचा। सर्प ने राजा से कहा- हे राजन् मैं तुम्हें काटकर अपने पूर्व जन्म का बदला चुकाने आया था, परन्तु तुम्हारे सौजन्य और सद्व्यवहार ने मुझे परास्त कर दिया। अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूँ। मित्रता के उपहार स्वरूप अपनी बहुमूल्य मणि मैं तुम्हें दे रहा हूँ। लो इसे अपने पास रखो। इतना कहकर और मणि राजा के सामने रखकर सर्प उलटे पाँव अपने घर वापस चला गया। भलमनसाहत और सद्व्यवहार ऐसे प्रबल अस्त्र हैं, जिनसे बुरे- से स्वभाव के दुष्ट मनुष्यों को भी परास्त होना पड़ता है।

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