Hindi story Mahabharat Katha “ Karn aur Duryodhan vadh”, ”कर्ण और दुर्योधन वध ” Hindi Mahabharat story for Primary Class, Class 9, Class 10 and Class 12

कर्ण और दुर्योधन वध  –  महाभारत कथा   

Karn aur Duryodhan vadh – Mahabharat Katha 

 

 द्रोण बड़े ही दुर्धर्ष थे। वे सम्पूर्ण क्षत्रियों का विनाश करके पाँच वें दिन मारे गये। दुर्योधन पुन शोक से आतुर हो उठा। उस समय कर्ण उसकी सेना का कर्णधार हुआ। पाण्डव-सेना का आधिपत्य अर्जुन को मिला। कर्ण और अर्जुन में भाँति-भाँति के अस्त्र-शस्त्रों की मार-काट से युक्त महाभयानक युद्ध हुआ, जो देवासुर-संग्राम को भी मात करने वाला था। कर्ण और अर्जुन के संग्राम में कर्ण ने अपने बाणों से शत्रु-पक्ष के बहुत-से वीरों का संहार कर डाला सत्रहवें दिन से पहले तक, कर्ण का युद्ध अर्जुन के अतिरिक्त सभी पांडवों से हुआ। उसने महाबली भीम सहित इन पाण्डवों को एक-पर-एक रण में परास्त भी किया था। पर माता कुंती को दिए वचनानुसार उसने किसी भी पांडव की हत्या नहीं की। सत्रहवें दिन के युद्ध में आखिरकार वह घड़ी आ ही गई, जब कर्ण और अर्जुन आमने-सामने आ गए। इस शानदार संग्राम में दोनों ही बराबर थे। कर्ण को उसके गुरू परशुराम द्वारा विजय नामक धनुष भेंट स्वरूप दिया गया था, जिसका प्रतिरूप स्वयं विश्वकर्मा ने बनाया था। दुर्योधन के निवेदन पर पांडवों के मामा शल्य कर्ण के सारथी बनने के लिए तैयार हुए। दरसल अर्जुन के सारथी स्वयं श्रीकृष्ण थे, और कर्ण किसी भी मामले में अर्जुन से कम ना हो इसके लिए शल्य से सारथी बनने का निवेदन किया गया, क्योंकि उनके अंदर वे सभी गुण थे जो एक योग्य सारथी में होने चाहिए।

 रण के दौरान, अर्जुन के बाण कर्ण के रथ पर लगे और उसका रथ कई गज पीछे खिसक गया। लेकिन, जब कर्ण के बाण अर्जुन के रथ पर लगे तो उसका रथ केवल कुछ ही बालिश्त (हथेली जितनी दूरी) दूर खिसका। इसपर श्रीकृष्ण ने कर्ण की प्रशंसा की। इस बात पर चकित होकर अर्जुन ने कर्ण की इस प्रशंसा का कारण पूछा, क्योंकि उसके बाण रथ को पीछे खिसकाने में अधिक प्रभावशाली थे। तब कृष्ण ने कहा कि कर्ण के रथ पर केवल कर्ण और शल्य का भार है, लेकिन अर्जुन के रथ पर तो स्वयं वे और हनुमान विराजमान है, और तब भी कर्ण ने उनके रथ को कुछ बालिश्त पीछे खिसका दिया। इसी प्रकार कर्ण ने कई बार अर्जुन के धनुष की प्रत्यंचा काट दी। लेकिन हर बार अर्जुन पलक झपकते ही धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा लेता। इसके लिए कर्ण अर्जुन की प्रशंसा करता है और शल्य से कहता है कि वह अब समझा कि क्यों अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहा जाता है। कर्ण और अर्जुन ने दैवीय अस्त्रों को चलाने के अपने-अपने ज्ञान का पूर्ण उपयोग करते हुए बहुत लंबा और घमासान युद्ध किया। कर्ण द्वारा अर्जुन का सिर धड़ से अलग करने के लिए “नागास्त्र” का प्रयोग किया गया। लेकिन श्रीकृष्ण द्वारा सही समय पर रथ को भूमि में थोड़ा सा धँसा लिया गया जिससे अर्जुन बच गया। इससे “नागास्त्र” अर्जुन के सिर के ठीक ऊपर से उसके मुकुट को छेदता हुआ निकल गया। नागास्त्र पर उपस्थित अश्वसेना नाग ने कर्ण से निवेदन किया कि वह उस अस्त्र का दोबारा प्रयोग करे ताकि इस बार वह अर्जुन के शरीर को बेधता हुआ निकल जाए, लेकिन कर्ण माता कुंती को दिए वचन का पालन करते हुए उस अस्त्र के पुनः प्रयोग से मना कर देता है।

धरती में धंसे अपने रथ के पहिए को निकालता कर्ण।यद्यपि युद्ध गतिरोधपूर्ण हो रहा था लेकिन कर्ण तब उलझ गया जब उसके रथ का एक पहिया धरती में धँस गया (धरती माता के श्राप के कारण)। वह अपने को दैवीय अस्त्रों के प्रयोग में भी असमर्थ पाता है, जैसा की उसके गुरु परशुराम का श्राप था। तब कर्ण अपने रथ के पहिए को निकालने के लिए नीचे उतरता है और अर्जुन से निवेदन करता है की वह युद्ध के नियमों का पालन करते हुए कुछ देर के लिए उसपर बाण चलाना बंद कर दे। तब श्रीकृष्ण, अर्जुन से कहते हैं कि कर्ण को कोई अधिकार नहीं है की वह अब युद्ध नियमों और धर्म की बात करे, जबकि स्वयं उसने भी अभिमन्यु वध के समय किसी भी युद्ध नियम और धर्म का पालन नहीं किया था। उन्होंने आगे कहा कि तब उसका धर्म कहाँ गया था जब उसने दिव्य-जन्मा द्रौपदी को पूरी कुरु राजसभा के समक्ष वैश्या कहा था। द्युत-क्रीड़ा भवन में उसका धर्म कहाँ गया था। इसलिए अब उसे कोई अधिकार नहीं की वह किसी धर्म या युद्ध नियम की बात करे और उन्होंने अर्जुन से कहा कि अभी कर्ण असहाय है (ब्राह्मण का श्राप फलीभूत हुआ) इसलिए वह उसका वध करे। श्रीकृष्ण कहते हैं की यदि अर्जुन ने इस निर्णायक मोड़ पर अभी कर्ण को नहीं मारा तो संभवतः पांडव उसे कभी भी नहीं मार सकेंगे और यह युद्ध कभी भी नहीं जीता जा सकेगा। तब, अर्जुन ने एक दैवीय अस्त्र का उपयोग करते हुए कर्ण का सिर धड़ से अलग कर दिया। कर्ण के शरीर के भूमि पर गिरने के बाद एक ज्योति कर्ण के शरीर से निकली और सूर्य में समाहित हो गई। तब श्रीकृष्ण, अर्जुन से कहते हैं कि कर्ण को कोई अधिकार नहीं है की वह अब युद्ध नियमों और धर्म की बात करे, जबकि स्वयं उसने भी अभिमन्यु वध के समय किसी भी युद्ध नियम और धर्म का पालन नहीं किया था। उन्होंने आगे कहा कि तब उसका धर्म कहाँ गया था जब उसने दिव्य-जन्मा द्रौपदी को पूरी कुरु राजसभा के समक्ष वैश्या कहा था। द्युत-क्रीड़ा भवन में उसका धर्म कहाँ गया था। इसलिए अब उसे कोई अधिकार नहीं की वह किसी धर्म या युद्ध नियम की बात करे और उन्होंने अर्जुन से कहा कि अभी कर्ण असहाय है (ब्राह्मण का श्राप फलीभूत हुआ) इसलिए वह उसका वध करे। श्रीकृष्ण कहते हैं की यदि अर्जुन ने इस निर्णायक मोड़ पर अभी कर्ण को नहीं मारा तो संभवतः पांडव उसे कभी भी नहीं मार सकेंगे और यह युद्ध कभी भी नहीं जीता जा सकेगा। तब, अर्जुन ने एक दैवीय अस्त्र का उपयोग करते हुए कर्ण का सिर धड़ से अलग कर दिया। कर्ण के शरीर के भूमि पर गिरने के बाद एक ज्योति कर्ण के शरीर से निकली और सूर्य में समाहित हो गई।।तदनन्तर राजा शल्य कौरव-सेना के सेनापति हुए, किंतु वे युद्ध में आधे दिन तक ही टिक सके। दोपहर होते-होते राजा युधिष्ठिर ने उन्हें मार दिया।

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

maharaja188 garuda4d maharaja188 senior4d maharaja188 maharaja188 maharaja188 senior4d garuda4d maharaja188 maharaja188 maharaja188 maharaja188 maharaja188 maharaja188 senior4d garuda4d maharaja188 garuda4d senior4d maharaja188 mbah sukro maharaja188 maharaja188 slot gacor senior4d maharaja188 senior4d maharaja188 maharaja188 maharaja188 senior4d maharaja188 maharaja188 maharaja188 maharaja188 senior4d kingbokep scatter hitam maharaja188 senior4d maharaja188 slot777 kingbokep https://pusakawin.free.site.pro/ maharaja188 maharaja188 https://heylink.me/pusakawin./ https://desty.page/pusakawin https://link.space/@pusakawin pusakaiwn kingbokep ozototo https://mez.ink/pusakawin https://gmssssarangpur.com/classes/ https://saturninnovation.com/scss/ slot resmi scatter hitam https://pusakaemas.b-cdn.net https://pusakawin.netlify.app/ https://pusakawin.onrender.com/ https://pusakawin.github.io pusakawin pusakawin pusakawin pusakawin pusakawin pusakawin pusakawin pusakawin pusakawin mbah sukro pusakawin kingbokep pusakawin pusakawin pusakawin pusakawin maharaja188 pusakawin maharaja188 pusakawin pusakawin pusakawin pusaka win pornhub maharaja188 pusakawin pusakawin pusakawin slot777 Pondok Pesantren Al Ishlah Bondowoso pay4d pusakawin slot thailand pusakawin maharaja188 maharaja188 slot maharaja188 maharaja188 maharaja188 slot gacor maharaja188 slot777 maharaja188 pusakawin maharaja188 bangsawin88 slot777 maharaja188 bangsawin88 bangsawin88 bangsawin88 maharaja188 bangsawin88 jamur4d bangsawin88 bandar bola maharaja188 pusakawin slot qris pusakawin bangsawin88 bangsawin88 bangsawin88 slot qris bangsawin88 slot gacor kingbokep slot gacor 777 slot777 slot mpo bangsawin88 cariwd88 cariwd88 samson88 samson88 samson88 samson88 mbahsukro mbahsukro pusakawin