Hindi Vrat Katha, Dharmik katha on “Pradosh Vrat Katha ”, “प्रदोष व्रतकथा” Hindi Poranik Prernadayak Story for All Classes.

प्रदोष व्रतकथा

Pradosh Vrat Katha 

प्रदोष व्रत कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करने वाला है। स्त्री अथवा पुरूष जो भी अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत (Pradosha vrata) को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व है

रविवार के दिन प्रदोष व्रत आप रखते हैं तो सदा नीरोग रहेंगे

सोमवार के दिन व्रत करने से आपकी इच्छा फलित होती है

मंगलवार को प्रदोष व्रत रखने से रोग से मुक्ति मिलती है और आप स्वस्थ रहते हैं।

बुधवार के दिन इस व्रत का पालन करने से सभी प्रकार की कामना सिद्ध होती है।

बृहस्पतिवार के व्रत से शत्रु का नाश होता है।

शुक्र प्रदोष व्रत से सभाग्य की वृद्धि होती है।

शनि प्रदोष व्रत से पुत्र की प्राप्ति होती है।

इस व्रत के महात्म्य को गंगा के तट पर किसी समय वेदों के ज्ञाता और भगवान के भक्त श्री सूत जी ने सनकादि ऋषियों को सुनाया था। सूत जी ने कहा है कि कलियुग में जब मनुष्य धर्म के आचरण से हटकर अधर्म की राह पर जा रहा होगा, हर तरफ अन्याय और अनचार का बोलबाला होगा। मानव अपने कर्तव्य से विमुख हो कर नीच कर्म में संलग्न होगा उस समय प्रदोष व्रत ऐसा व्रत होगा जो मानव को शिव की कृपा का पात्र बनाएगा और नीच गति से मुक्त होकर मनुष्य उत्तम लोक को प्राप्त होगा।

सूत जी ने सनकादि ऋषियों को यह भी कहा कि प्रदोष व्रत से पुण्य से कलियुग में मनुष्य के सभी प्रकार के कष्ट और पाप नष्ट हो जाएंगे। यह व्रत अति कल्याणकारी है, इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होगी। इस व्रत में अलग अलग दिन के प्रदोष व्रत से क्या लाभ मिलता है यह भी सूत जी ने बताया। सूत जी ने सनकादि ऋषियों को बताया कि इस व्रत के महात्मय को सर्वप्रथम भगवान शंकर ने माता सती को सुनाया था। मुझे यही कथा और महात्मय महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया और यह उत्तम व्रत महात्म्य मैने आपको सुनाया है।

प्रदोष व्रत विधान

सूत जी ने कहा है प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहते हैं। सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस व्रत में महादेव भोले शंकर की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है।

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.