भारत का भूगोल
Geography of India
प्राचीन काल में आर्यों की भरत नाम की शाखा द्वारा हिमालय पर्वत के दक्षिणी भाग के अनार्यों अथवा आर्यो को पराजित करके उस भूभाग का नाम भरत शाखा के नाम पर ही भारतवर्ष रखा गया तथा इसके उत्तर-पश्चिम में प्रवाहित होने वाली नदी को सिन्धु नाम दिया गया। कालान्तर में ईरानियों ने इसे हिन्दू तथा देश को हिन्दुस्तान कहा, जबकि यूनानियों ने सिन्धु नदी को इन्डस और उस देश को, जहां यह नदी प्रवाहित होती है। ‘इण्डिया’ नाम दिया। वर्तमान समय में यही देश विश्व में ‘भारत’ एवं ‘इण्डिया’ दोनों नामों से जाना जाता है।
भारत के मुख्य भूभाग में चार क्षेत्र हैं, नामत: महापर्वत क्षेत्र, गंगा और सिंधु नदी के मैदानी क्षेत्र और मरूस्थली क्षेत्र और दक्षिणी प्रायद्वीप। हिमालय की तीन शृंखलाएँ हैं, जो लगभग समानांतर फैली हुई हैं। इसके बीच बड़े – बड़े पठार और घाटियाँ हैं, इनमें कश्मीर और कुल्लू जैसी कुछ घाटियाँ उपजाऊ, विस्तृत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं। संसार की सबसे ऊंची चोटियों में से कुछ इन्हीं पर्वत शृंखलाओं में हैं। अधिक ऊंचाई के कारण आना -जाना केवल कुछ ही दर्रों से हो पाता है, जिनमें मुख्य हैं –
चुंबी घाटी से होते हुए मुख्य भारत-तिब्बत व्यापार मार्ग पर जेलेपला और नाथुला दर्रा
उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग
कल्पना (किन्नौर) के उत्तर – पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी ला दर्रा
पर्वतीय दीवार लगभग 2,400 कि.मी. की दूरी तक फैली है, जो 240 किमी से 320 किमी तक चौड़ी है। पूर्व में भारत तथा म्यांमार और भारत एवं बांग्लादेश के बीच में पहाड़ी शृंखलाओं की ऊंचाई बहुत कम है। लगभग पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई गारो, खासी, जैंतिया और नगा पहाडियाँ उत्तर से दक्षिण तक फैली मिज़ो तथा रखाइन पहाडियों की शृंखला से जा मिलती हैं।
मरुस्थली क्षेत्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है बड़ा मरुस्थल कच्छ के रण की सीमा से लुनी नदी के उत्तरी ओर आगे तक फैला हुआ है। राजस्थान सिंध की पूरी सीमा इससे होकर गुजरती है। छोटा मरुस्थल लुनी से जैसलमेर और जोधपुर के बीच उत्तरी भूभाग तक फैला हुआ बड़े और छोटे मरुस्थल के बीच का क्षेत्र बिल्कुल ही बंजर है जिसमें चूने के पत्थर की पर्वत माला द्वारा पृथक किया हुआ पथरीला भूभाग है।
पर्वत समूह और पहाड़ी शृंखलाएँ जिनकी ऊँचाई 460 से 1,220 मीटर है, प्रायद्वीपीय पठार को गंगा और सिंधु के मैदानी क्षेत्रों से अलग करती हैं। इनमें प्रमुख हैं अरावली, विंध्य, सतपुड़ा, मैकाला और अजन्ता। इस प्रायद्वीप की एक ओर पूर्व घाट दूसरी ओर पश्चिमी घाट है जिनकी ऊँचाई सामान्यत: 915 से 1,220 मीटर है, कुछ स्थानों में 2,440 मीटर से अधिक ऊँचाई है। पश्चिमी घाटों और अरब सागर के बीच एक संकीर्ण तटवर्ती पट्टी है जबकि पूर्व घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच का विस्तृत तटवर्ती क्षेत्र है। पठार का दक्षिणी भाग नीलगिरी पहाड़ियों द्वारा निर्मित है जहाँ पूर्वी और पश्चिमी घाट मिलते हैं। इसके आगे इलायची की पहाडियाँ पश्चिमी घाट के विस्तारण के रुप में मानी जा सकती हैं।