क्रोध हमारी सही गलत पहचानने की शक्ति को क्षीण कर देता है!
Krodh hamari sahi galat pehchan ki shakti ko kshin kar deta hai
खलीफा उमर का सारा जीवन धार्मिक सेवा में बीता था। अन्त में तो उन्हें धर्म के लिए तलवार भी उठानी पड़ी। एक दिन उनका अपने प्रतिद्वंद्वी से सामना हो गया। दोनों में गुत्थमगुत्था हो गई। उमर ने उसे पछाड़ दिया और छाती पर चढ़ बैठे। जैसे ही उसका सिर काट डालने के लिए उन्होंने अपनी तलवार निकाली कि प्रतिद्वंद्वी ने उन्हें गाली देदी। गाली सुनते ही खलीफा उमर उठकर खड़े हो गये और अपनी तलवार म्यान में बन्द कर ली
जो सैनिक उनके साथ थे उन्हें इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने कुछ रुष्ट स्वर में कहा- श्रीमान् जी आपने यह क्या किया आपको तो इसे मार ही देना चाहिए था। खलीफा उमर गम्भीर हो गये और बोले भाई मैंने युद्ध न्याय के लिए बिना क्रोध के किया था, किन्तु जब इसने मुझे गाली दी तो मुझे क्रोध आ गया। इस स्थिति में इसे मारने से पहले अपने क्रोध को मारना आवश्यक हो गया। अब मेरा क्रोध शान्त हो गया हैं इसलिए दुबारा युद्ध करूंगा।
खलीफा उमर का यह निष्काम शब्द सुनकर प्रतिद्वंद्वी अपने आप प्रादुर्भूत होकर उनके पैरों पर गिर गया और सदैव के लिए उनका भक्त बन गया।
Moral Of The Story: दोस्तों ये कहानी हमें जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है, ये हमें सिखाती है की जीवन में परिस्थितियां कितनी ही अनुकूल या प्रतिकूल क्यों न हो हमें क्रोध नहीं करना चाहिए, क्रोध ही हमारा सबसे बड़ा शत्रु है, क्रोध हमारी सही गलत पहचानने की शक्ति को क्षीण कर देता है और हमें सच्चाई के प्रति अँधा बना देता है। क्रोध पर नियंत्रण अथवा विजय प्राप्त करके हम अपने आप को और अपने आस – पास के परिवेश को बेहतर बना सकते हैं।